आस-पास छोटी-छोटी छोलदारियां खड़ी थीं। मधुबन उन्हीं में घूमने लगा। वह अपने हृदय को दबाना चाहता था। पर विवश होकर जैसे उस डेरे के आस-पास चक्कर काटने लगा।
इतने में एक दूसरा परिचित कंठस्वर सुनाई पड़ा। हां, चौबे ही तो थे। किसी से कह रहे थे। तहसीलदार साहब! महंतजी से जाकर कहिए कि पूजा का समय हो गया। ठाकुरजी के पास भी आवें। मैना तो कहीं जा नहीं रही है।
मरे महंतजी, यह जितना ही बूढ़ा होता जा रहा है उतना ही पागल होने लगा है। रुपया बरस रहा है, और कोई रोकने वाला नहीं। तहसीलदार ने उत्तर दिया। मधुबन के अंग से चिनगारियां छूटने लगीं। उसके जीवन को विषाक्त करने वाले सब विषैले मच्छर एक जगह। उसके शरीर में जैसे भूला हुआ बल चैतन्य होने लगा।
उसने सोचा-मैं तो संसार के लिए लिए मृतप्राय हूं ही। फिर प्रेतात्मा की तरह मेरे अदृश्य जीवन का क्या उद्देश्य है? तो एक बार इन सबों को...।
फिर ऐंठनेवाले हृदय पर अधिकार किया। वह प्रकृतिस्थ होकर ध्यान से उसकी बातों को सुनने लगा।
अभी अफसर लोग डेरे में हैं। महंतजी नहीं आ सकते।—एक नौकर ने आकर चौबे से कहा।
तहसीलदार ने कहा—महाराज! क्यों आप घबराते हैं, कुछ काम तो करना नहीं है। इसके साथ हम लोगों के रहने का यह तात्पर्य तो है नहीं कि यह सुधारा जाए। खाओ-पीओ, मौज लो। देखते नहीं, मैं चला था धामपुर के जमींदार को सुधारने, क्या दशा हुई! आज वही मेम सर्वस्व की स्वामिनी है। और मैं निकाल बाहर किया गया। गांव में किसी की दाल नहीं गलती। किसान लोगों के पास लम्बी-चौड़ी खेती हो गई। वे अब भला कानूनगो और तहसीलदारों की बात क्यों सुनेंगे! अमीरों के यहां तो यह सब होता ही रहता है। हम लोग मंदिर के सेवक हैं। चलने दो।
चलने दें, ठीक तो है। पर कुछ नियम संसार में हैं अवश्य। उनको तोड़कर चलने का क्या फल होता है, यह आपने अभी नहीं देखा क्या? देखिये, हम लोगों ने अधिकार रहने पर धामपुर में कैसा अंधेर मचाया था। अब किसी तरह रोटी के टुकड़ों पर जी रहे हैं। कहां वह इंद्रदेव की सरलता और कहां इसकी पिशाचलीला आपने देखा नहीं मुंशीजी, वह लड़की, देहाती बालिका, तितली जिसकी गृहस्थी हम लोगों ने सत्यानाश कर देने का संकल्प कर लिया था, आज कितने सुख से और सुख भी नहीं, गौरव से—जी रही है। उसकी गोद में एक सुंदर बच्चा है, और गांव भर की स्त्रियों में उसका सम्मान है!
मधुबन और भी कान लगाकर सुनने लगा।
बच्चा! अरे वह न जाने किसका है। उसकी टीम-टाम से कोई बोलता नहीं। पहले का समय होता तो कभी गांव के बाहर कर दी गई होती, और तुम आज उसकी बड़ी प्रशंसा कर रहे हो। उसी के पति मधुबन ने तो तुम्हारी यह दुर्दशा की थी। बुरा हो चांडाल मधुबन का! उसने भाई तुम्हारा बायां हाथ ही झूठा कर दिया। यह तो कहो, किसी तरह काम चला लेते हो।
हां जी, अपने लोगों को क्या।