तो चलो, हम लोग भी वहीं बैठकर गाना सुनें। यहां क्या कर रहे हैं।
तहसीलदार ने चौबे का हाथ पकड़कर उठाया। दोनों बड़े डेरे की ओर चले। मधुबन अंधकार में हट गया। उसका मन उद्विग्न था। वह किसी तरह उसको शांत कर रहा था।
मैना की स्वर-लहरी वायु-मण्डल में गूंज रही थी। किंतु मधुबन के मन में तितली और उसके लड़के के विषय में विकट द्वंद चलने लगा था। वह पागल की तरह लड़खड़ाता हुआ ननीगोपाल के पास पहुंचा।
कहा-ननी बाबू! छुट्टी दीजिए। मैं अब जाता हूं।
क्यों मधुबन! क्या तुमको यहां कोई कष्ट है?
नहीं, अब मैं यहां नहीं रह सकता।
तो भी रात को कहां जाओगे? कल सवेरे जहां जाना हो, वहां के लिए टिकट दिला दूंगा! -ननी ने पुचकारते हुए कहा।
मधुबन ने रात किसी तरह काट लेना ही मन में स्थिर किया। वह चुपचाप लेट रहा।
मेले का कोलाहल धीरे-धीरे शांत हो गया था। रात गम्भीर हो चली थी। मधुबन की आंखो में नींद नहीं थी। प्रतिशोध लेने के लिए उसका पशु सांकल तुड़ा रहा था, और वह बार-बार उसे शांत करना चाहता था। भयानक द्वंद चल रहा था। सहसा अब उसे झपकी आने लगी थी, एक हल्ला-सा मचा-हाथी! हाथी!! रात की अंधियारी में चारों ओर हलचल मच गई। साटे-बर्दार दौड़े। पुलिस का दल कमर बांधने लगा। लोग घबराकर इधर-उधर भागने लगे।
मधुबन चौंककर उठ बैठा। उसके मस्तक में एक पुरानी घटना दौड़-धूप मचाने लगी मैना भी उसमें थी और हाथी भी बिगड़ा था, और तब मधुबन ने उसकी रक्षा की थी; वहीं से उसके जीवन में परिवर्तन का आरंभ हुआ था।
तो आज क्या होगा? ऊंह! जो होना हो, वह होकर रहे। मधुबन को ही क्यों न हाथी कुचल दे। सारा झगड़ा मिट जाए, सारी मनोवेदना की इतिश्री हो जाए। वह अविचल बैठा रहा।
घंटों में कोलाहल शांत हुआ। कोई कहता था, बीसों मनुष्य कुचल गए। कोई कहता, नहीं कल दस ही तो। इस पर वाद-विवाद चलने लगा।
किंतु मधुबन स्थिर था। उसने सोचा, जिसकी मृत्यु आई उसे संसार से छुट्टी मिली। चलो उतने तो जीवन-दंड से मुक्त हो गए।
सवेरे जब वह जाने के लिए प्रस्तुत था, ननीगोपाल से एक ग्राहक कहने लगा-भाई, मैं तो इस मेले से भागना चाहता हूं। यहां पशु और मनुष्य में भेद नहीं। सब एक जगह बुरी तरह एकत्र किए गए हैं। कब किसकी बारी आवेगी, कौन कह सकता है। सुना है तुमने महंत का समाचार? उनकी वेश्या, पुजारी और तहसीलदार नाम का एक कर्मचारी तो हाथी से कुचल कर मर गए। महंत के सिर में चोट आई है। उसके भी बचने के लक्षण नहीं हैं। उसी के हाथी बिगड़े, तीनों-के-तीनों पागल हो गए। कुछ लोग तो कहते हैं, जो राजा इन हाथियों को लेना चाहता था उसी ने कुछ इन्हें खिलवा दिया।
ननी ने कहा-मरें भी ये पापी। हां, तो तुमको तीन दर्जन चाहिए? बांध दो जी! नौकर साबुन बांधने लगे। मधुबन स्तब्ध खड़ा था। ननी ने उससे पूछा-तो तुम जाना ही चाहते