पृष्ठ:तितली.djvu/१५६

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देखा, फिर ऐसी बात करोगे तो मैं बोलना छोड़ दूंगा।

रामजस की आंखो में औसू भर आए। उसे मधुबन का स्मरण व्यथित करने लगा। आज वह इस अमृत-वाणी का सुख लेने के लिए क्यों नहीं अंधकार के गर्त से बाहर आ जाता। उसकी उदासी और भी बढ़ गई।

धीरे-धीरे धुंधली छाया प्रकृति के मुंह पर पड़ने लगी। दोनों घूमते-घूमते शेरकोट के खंडहर पर पहुंच गए थे। मोहन ने कहा-चाचा! यह तो जैसे कोई मसान है?

लम्बी सांस लेकर रामजस ने कहा-हां बेटा! मसान ही है। इसी जगह तुम्हारे वंश की प्रभुता की चिता जल रही है। तुमको क्या मालूम; यही तुम्हारे पुरुषों की डीह है। तुम्हारी ही यह गढ़ी है।

मेरी? -मोहन ने आश्चर्य से पूछा।

हां तुम्हारी, तुम्हारे पिता मधुबन का ही घर है।

मेरे पिता। दुहाई चाचा। तुम एक सच्ची बात बताओगे? मेरे पिता थे! फिर स्कूल में रामनाथ ने उस दिन क्यों कह दिया था कि-चल, तेरे बाप का भी ठिकाना है!

किसने कहा बेटा! बता, मैं उसकी छाती पर चढ़कर उसकी जीभ उखाड़ लूं। कौन यह कहता है?

अरे चाचा! उसे तो मैंने ही ठोक दिया। पर वह बात मेरे मन में कांटे की तहर खटक रही है। पिताजी हैं कि मर गये, यह पूछने पर कोई उत्तर क्यों नहीं देता। बुआ चुप रह जाती हैं। मां आंखो में आंसू भर लेती हैं। तुम बताओगे, चाचा।

बेटा, यही शेरकोट का खंडहर तेरे पिता को निर्वासित करने का कारण है। हां, यह खंडहर ही रहा। न इस पर बैंक बना, न पाठशाला बनी। अपने को उजाड़कर यह अभागा पड़ा है और एक सुंदर गृहस्थी को भी उजाड़ डाला!

तो चाचा! कल से इसको बसाना चाहिए। यह बस जाएगा तो पिताजी आ जाएंगें?

कह नहीं सकता।

तब आओ, हम लोग कल से इसमें लपट जाएं। इधर तो स्कूल में गर्मी की छुट्टी है। दोतीन घर बनाते कितने दिन लगेंगे।

अरे पागल! यह जमींदार के अधिकार में है! इसमें का एक तिनका भी हम छू नहीं सकते!

हम तो छुएंगे चाचा! देखो, यह बांस की कोठी है। मैं इसमें से आज ही एक कैन तोड़ता हूं। -कहकर मोहन, रामजस के 'हां-हां' करने पर भी पूरे बल से एक पतली-सी बांस की कैन तोड़ लाया। रामजस ने ऊपर से तो उसे फटकारा, पर भीतर वह प्रसन्न भी हुआ। उसने संध्या की निस्तब्धता को आंदोलित करते हुए अपना सिर हिलाकर मन-ही-मन कहा-है तू मधुबन का बेटा!

रामजस का भूला हुआ बल, गया हुआ साहस, लौट आया। उसने एक बार कंधा हिलाया। अपनी कल्पना के क्षेत्र में ही झूमकर वह लाठी चलाने लगा, और देखता है कि शेरकोट में सचमुच घर बन गया। मोहन के लिए उसके बाप-दादों की डीह पर एक छोटा-सा सुंदर घर प्रस्तुत हो ही गया।

अंधकार पूरी तरह फैल गया था। उसने उत्साह से मोहन का हाथ पकड़ -हिला दिया,