पृष्ठ:तितली.djvu/२१

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माधुरी ने सिर उठाकर देखा और कहा—आइए, हम लोग बड़ी देर से आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। मां का दर्द तो बहुत बढ़ गया है। ___ माधुरी के पास ही बैठते हुए अनवरी ने—बीबी, तुमको देखने के लिए जी ललचाया रहता है, मां को तो देगी ही कहकर उसके हाथों को दबा दिया। माधुरी ने झेंपकर कहा-आहा तुम तो मेम और साहब दोनों ही हो न? अच्छा, यह तो बताओ, तुम्हारे ठहरने का क्या प्रबंध करूं? आज रात को तो मोटर से शहर लौट जाने न दूंगी। अभी मां पूजा कर रही हैं, एक घंटे में खाली होगी, फिर घंटों उनको देखने में लग जाएगा। बजेगा दो और जाना है तीस मील! आज रात को तुमको रहना ही होगा। . अनवरी ने मुस्कुराते हुए कहा—सो तो बीबी, तुम्हारी भाभी ने मुझे न्योता ही दिया माधुरी क्षण-भर के लिए चुप हो गई। फिर बोली—अनवरी, ऐसी दिल्लगी न करो, यह बात मुझे ही नहीं, घर भर को खटक रही है। लेकिन भाई साहब तो कहते हैं कि वह हमारी दोस्त है! हां—बीबी, दोस्ती नहीं तो क्या दुश्मनी से कोई इतना बड़ा... माधुरी ने भीतर के कमरे की ओर देखते हुए उसके मुंह पर हाथ रख दिया, और धीरेधीरे कहने लगी—प्यारी अनवरी! क्या इस चुडैल से छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं? हम लोग क्या करें? कोई बस नहीं चलता। धीरे-धीरे सब हो जाएगा। लेकिन तुम्हें बुरा न लगे, तो मैं एक बात पूछ लूं। क्या? कुंवर साहब इससे ब्याह कर लें, तो तुम्हारा क्या? ऐसा न कहो अनवरी! तुम्हारी मां तो फिर तुमको ही... उंह तुम क्या बक रही हो! अच्छा तो मैं कुछ दिन यहां रहूं तो... तो रहो न मेरी रानी।


हाथ-मुंह धोकर मुलायम तौलिए से हाथ पोंछती हुई अनवरी बड़े-से दर्पण के सामने खड़ी थी। शैला अपने सोफा पर बैठी हुई रेशमी रूमाल पर कोई नाम कसीदे से काढ़ रही थी। अनवरी सहसा चंचलता से पास जाकर उन अक्षरों को पढ़ने लगी। शैला ने अपनी भोली आंखों को एक बार ऊपर उठाया, सामने से सूर्योदय की पीली किरणों ने उन्हें धक्का दिया, वे फिर नीचे झुक गईं। अनवरी ने कहा—मिस शैला! क्या कुंवर साहब का नाम है? जी—नीचा सिर किए हुए शैला ने कहा। क्या आप रोज सवेरे एक रूमाल उनको देती हैं? यह तो अच्छी बोहनी है!—कहकर