पृष्ठ:तितली.djvu/२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

________________

अनवरी खिलखिला उठी। शैला को उसकी यह हंसी अच्छी न लगी। रात-भर उसे अच्छी नींद भी न आई थी। इन्द्रदेव ने अपनी माता से उसे मिलाने की जो उत्सुकता नहीं दिखलाई, उल्टे एक ढिलाई का आभास दिया, वही उसे खटक रहा था। अनवरी ने हंसी करके उसको चौंकाना चाहा; किंतु उसके हृदय में जैसे हंसने की सामग्री न थी? इन्द्रदेव ने कमरे के भीतर प्रवेश करते हुए कहा—शैला! आज तुम टहलने नहीं जा सकी? मुझे तो आज किसानों की बातों से छुट्टी न मिलेगी। दिन भी चढ़ रहा है। क्यों न मिस अनवरी को साथ लेकर घूम आओ! अनवरी ने ठाट से उठकर कहा—आदाबअर्ज है कुंवर साहब! बड़ी खुशी से! चलिए न! आज कुंवर साहब का काम मैं ही करूंगी शैला इस प्रगल्भता से ऊपर न उठ सकी। इन्द्रदेव और अनवरी को आत्म-समर्पण करते हुए उसने कहा—अच्छी बात है, चलिए। इन्द्रदेव बाहर चले गए। खेतों में अंकुरों की हरियाली फैली पड़ी थी। चौखूटे, तिकोने, और भी कितने आकारों के टुकड़े, मिट्टी की पेड़ों से अलगाए हुए, चारों ओर समतल में फैले थे। बीच-बीच में आम, नीम और महुए के दो-एक पेड़ जैसे उनकी रखवाली के लिए खड़े थे। मिट्टी की संकरी पगडंडी पर आगे शैला और पीछे-पीछे अनवरी चल रही थीं। दोनों चुपचाप पैर रखती हुई चली जा रही थीं। पगडंडी से थोड़ी दूर पर एक झोपड़ी थी, जिस पर लौकी और कुंभडे की लतर चढ़ी थी। उसमें से कुछ बात करने का शब्द सुनाई पड़ रहा था। शैला उसी ओर मुड़ी। वह झोंपड़ी के पास जाकर खड़ी हो गई। उसने देखा, देखा, मधुवा अपनी टूटी खाट पर बैठा हुआ बंजो से कुछ कह रहा है। बंजो ने उत्तर में कहा—तब क्या करोगे मधुबन! अभी एक पानी चाहिए। तुम्हारा आलू सोराकर ऐसा ही रह जाएगा? ढाई रुपए के बिना! महंगू महतो उधार हल नहीं देंगे? मटर भी सूख जाएगी। ___अरे आज मैं मधुबन कहां से बन गया रे बंजो पीट दूंगा जो मुझे मधुवा न कहेगी। मैं तुझे तितली कहकर न पुकारूंगा। सुना न? हल उधार नहीं मिलेगा, महतो ने साफ-साफ कह दिया है। दस विस्से मटर और दस बिस्से आलू के लिए खेत मैंने अपनी जोत में रखकर बाकी दो बीघे जौ-गेहं बोने के लिए उसे साझे में दे दिया है। यह भी खेत नहीं मिला, इसी की उसे चिढ़ है। कहता है कि अभी मेरा हल खाली नहीं है। __ तब तुमने इस एक बीघे को भी क्यों नहीं दे दिया! __मैंने सोचा कि शहर तो मैं जाया की करता हूं। नया आलू और मटर वहां अच्छे दामों पर बेचकर कुछ पैसे भी लूंगा; और बंजो जाड़े में इस झोपड़ी में बैठे-बैठे रात को उन्हें भूनकर खाने में कम सुख तो नहीं! अभी एक कंबल लेना जरूरी है। तो बापू से कहते क्यों नहीं? वह तुम्हें ढाई रुपया दे देंगे। उनसे कुछ मांगा, तो यही समझेंगे कि मधुवा मेरा कुछ काम कर देता है, उसी की मजूरी चाहता है। मुझे जो पढ़ाते हैं, उसकी गुरु-दक्षिणा मैं उन्हें क्या देता हूं? तितली! जो भगवान करेंगे, वही अच्छा होगा। अच्छा तो मधुबन! जाती हूं। अभी बापू छावनी से लौटकर नहीं आए। जी घबराता