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पृष्ठ:तितली.djvu/२८

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देलूंगी।

  • इसी से चली आई हैं न! अच्छा बेटा! इनको कोई कष्ट तो नहीं? हम लोग इनके शिष्टाचार से अपरिचित हैं। चौबेजी! आप ही न मेम साहब के लिए...ओ इनका नाम क्या है, यह पूछना तो मैं भूल ही गई।

मेरा नाम 'शैला' है मां जी! शैला की बोली घंटी की तरह गूंज उठी! श्यामदुलारी के मन में ममता उमड़ आई। उन्होंने कहा-चौबेजी! देखिए, इनको कोई कष्ट न होने पावे। इन्द्रदेव तो लड़का है, वह कभी काहे को इनकी सुविधा की खोज-खबर लेता होगा। जी सरकार! मेम साहब बड़ी चतुर हैं। वह तो कुंवर साहब का प्रबंध स्वयं आदेश देकर कराती रहती हैं। हम लोग तो अभी सीख रहे हैं। बड़े सरकार के समय में जो व्यवस्था थी, उसी से तो अब काम नहीं चल सकता! इन्द्रदेव घबरा गए थे। उन्हें कभी चौबे, कभी अनवरी पर क्रोध आता; पर वह बहाली देते रहे। __ माधुरी ने कहा-अच्छा तो भाई साहब! अभी शहर चलने की इच्छा नहीं है क्या? अब तो यहां कड़ी देहाती सर्दी पड़ेगी। नहीं, अभी तो यहीं रहूंगा। क्यों मां, यहां कोई कष्ट तो नहीं है?—इन्द्रदेव ने पूछा। अनवरी ने कहा-इस छोटी कोठी में साफ हवा कम आती है। और तो कोई...हां, बीबीरानी, मैं यह तो कहना भूल ही गई थी कि मुझे आज शहर चले जाना चाहिए। कई रोगियों को आज ही तक के लिए दवा दे आई हूं। मोटर तो मिल जाएगी न? ठहरिए, आप तो न जाने क्यों घबराई हैं। अभी तो मां की दवा...माधुरी की बात पूरी न होने पाई कि अनवरी ने कहा-दवा खाएगी तो नहीं, यही लगाने की दवा है। लगाते रहिए, मुझे रोक कर क्या कीजिएगा। हां, यहां साफ हवा मिलनी चाहिए, इसके लिए आप सोचिए। __चौबेजी बीच में बोल उठे-तो बड़ी सरकार उस कोठी में रहें, खुले हुए कमरे और दालान उसमें तो हैं ही। बोलने के लिए तो बोल गए; पर चौबेजी कई बातें सोचकर दांत से अपनी जीभ दबाने लगे। उनकी इच्छा तो हुई कि अपने कान भी पकड़ लें; पर साहस न हुआ। इन्द्रदेव चुप रहे। शैला ने कहा-मां जी! बड़ी कोठी में चलिए। यहां न रहिए। -वह बेचारी मूल गई कि श्यामदुलारी उसके साथ कैसे रहेंगी! श्यामदुलारी ने इन्द्रदेव का चेहरा देखा। वह उतरा हुआ तो नहीं था; किंतु उस पर उत्साह भी न था। माधुरी ने शैला को स्वयं कहते हुए जब सुना, तो वह बोली-अच्छा तो है मां! मेम साहब और अनवरी बीबी इसमें आ जाएंगी। हम लोग वहीं चलकर रहें। अनवरी ने कहा-मुझे एक दिन में लौट आने दीजिए। श्यामदुलारी ने देखा कि काम तो हो चला है, अब इस बात को यहीं रोक देना चाहिए। वह बोली-बेटा! कलेक्टर साहब ने नमूने का गांव बसाने का जो नक्शा भेजा था, उसे तुमने देखा? नहीं मां, अभी तो नहीं-शैला के पास वह है। इन्हें गांवों से बड़ा प्रेम है। मैंने इन्हीं के ऊपर यह भार छोड़ दिया है। इसके लिए यही एक योजना तैयार करने में लगी हैं।