पृष्ठ:तितली.djvu/२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

श्यामदुलरि सावधान हो गईं। शैला ने कहा-मां जी, अभी तो मैं गांवों में जाकर यहां की बातें समझने लगी हूं। फिर भी बहुत-सी बातें अभी नहीं समझ सकी हूं। किसी दिन आपको अवकाश रहे, तो मैं नक्शा ले आऊं?

चौबे जी ने एक बार माधुरी की ओर देखा और माधुरी ने अनवरी को। तीनों का भीतर-ही-भीतर एक दल-सा बंध गया। इधर मां, बेटे की ओर होने लगी-और शैला, जो व्यवधान था, उसकी खाई में पुल बनाने लगी।

श्यामदुलारी का हृदय, बेटे का काम की बातों में मन लगाते देखकर, मिठास से भरने लगा। उन्होंने कहा-अच्छा; तो मैं अब पूजा करने जाती हूं। बीबी! मिस अनवरी को जाने दो, कल आ जाएंगी। हां, एक बात तो मैं भूल ही गई थी-मिस अनवरी, आप आने लगिए, तो कृष्णमोहन को छुट्टी दिलाकर साथ लिवाते आइएगा।

श्यामदुलारी ने माधुरी को भी प्रसन्न करने का उपाय निकाल ही लिया! अनवरी ने कहा-बहुत अच्छा।

शैला ने कहा-मैं आपके पास आकर कभी-कभी बैठा करूं, इसके लिए क्या आप मुझे आज्ञा देगी मां जी!

क्यों नहीं; आपका घर है, चाहे जब चली आया करें। मुझे तो अपने देश की कहानी आपने सुनाई ही नहीं!

नहीं; मैं इसलिए आज्ञा मांगती थी कि मेरे आने से आपको कष्ट न हो। मुझे अलग कुर्सी पर बैठाया कीजिए। मैं आपको छुऊंगी नहीं शैला ने बड़ी सरलता से कहा।

श्यामदुलरि ने हंसकर कहा-वाह! यह तो मेरे सिर पर अच्छा कलंक है। क्या मैं किसी को छूती नहीं? आप आइए, मुझे आपकी बातें बड़ी मीठी लगती हैं।

इन्द्रदेव ने देखा कि उनके हृदय का बोझ टल गया-शैला ने मां के समीप पहंचने का अपना पथ बना लिया। उन्होंने इसे अपनी विजय समझी। वह मन-ही-मन प्रसन्न हो रहे थे कि शैला ने उठते हुए नमस्कार करके कहा-मां जी, मुझसे मूल हो सकती है, अपराध नहीं। तब भी, आप लोगों की स्नेह-छाया में मुझे सुख की अधिक आशाहै।

श्यामदुलारी का स्नेह-सिक्त हृदय भर उठा। एक दूर देश की बालिका कितना मधुर हृदय लिये उनके द्वार पर खड़ी है।

श्यामदुलारी स्नान करने चली गईं।

इन्द्रदेव के साथ शैला धीरे-धीरे बड़ी कोठी की ओर चली जा रही थी। मोटर के लिए चौबेजी गए थे, तब तक दालान में अनवरी से माधुरी कहने लगी-तुमने ठीक कहा था मिस अनवरी!

उसने माधुरी को अधिक खुलने का अवसर देते हुए कहा-मैंने क्या ठीक कहा था? यही, शैला के संबंध में...

अनवरी गंभीर बन गई। उसने कहा-बीबी रानी! तुम लोगों को इनसे कभी काम नहीं पड़ा है। ये सब जादूगर हैं। देखा न मां जी को कैसा अपनी ओर ढुलका लिया-मोम बन गई। क्या यूं ही सात समुद्र तेरह नदी पार करके यह आई है! और...

पर तुमने भी मिस अनवरी! शैला को अच्छा एक उखाड़ दिया! थोड़ा-सा तो वह सोचेगी, बंगले से हटना उसे अखरेगा। क्यों?-बीच ही में माधुरी ने कहा।