मधुबन बाबू तो नहीं आए। राजकुमारी ने एक बार शेरकोट के उजड़े खंडहर की ओर देखा और धीरे-धीरे रसोईघर की ओर चलीं । रोटी सेंकते हुए राजकुमारी ने पूछा - बुढ़िया , तूने मलिया के चाचा से कभी कहा था ।
क्या मालकिन ?
रामदीन से मलिया की सगाई के लिए । अब कब तक तू अकेली रहेगी ? अपने पेट के लिए तो वह पाजी जुटा ले ; सगाई करके क्या करेगा मालकिन ! ब्याह होता मधुबन बाबू का ; हम लोगों को वह दिन आखों से देखने को मिलता... किसका रे बुढ़िया ! — कहते हुए मधुबन ने आते ही उसकी पीठ थपथपा दी ।
राजकुमारी ने कहा — रोटी खाने का अब समय हुआ है न ? मधु ! तुम कितना जलाते हो ।
बहन ! मैं अपने आलू और मटर का पानी बरा रहा था , आज मेरा खेत सिंच गया । कहकर वह हंस पड़ा । वह प्रसन्न था ; किंतु राजकुमारी अपने पिता के वंश का वह विगत वैभव सोच रही थी ; उनको हंसी न आई ।
इन्द्रदेव की कचहरी में आज कुछ असाधारण उत्तेजना थी । चिकों के भीतर स्त्रियों का समूह,
बाहर पास - पड़ोस के देहातियों का जमाव था । शैला भी अपनी कुर्सी पर अलग बैठी थीं ।
बनजरिया वाले बाबाजी अपनी कहानी सुनाने वाले थे, क्योंकि गोभी के लिए उसमें
खेत बन गया था । उसी को लेकर तहसीलदार ने इन्द्रदेव को समझाया कि बनजरिया में
बोने - जोतने का खेत है। उस पर एकरेज — या और भी जो कुछ कानून के वैध उपायों से देन
लगाया जा सकता हो — लगाना ही चाहिए । और, इस बाबा को तो यहां से हटाना ही ।
होगा ; क्योंकि गांव के लोग इससे तंग आ गए हैं । यहसमाजी है, लडुकों को न जाने क्या
क्या सिखाता है — ऊंची जाति के लड़के हल चलाने लगे हैं । नीचों को बराबर कलकत्ता
बंबई कमाने जाने के लिए उकसाया करता है । इसके कारण लोगों को हलवाहों और मजूरों
का मिलना असंभव हो गया है । तिस पर भी यह बनजरिया देवनन्दन के नाम की है। वह
मर गया , अब लावारिस कानून के अनुसार यह जमींदार की है — इत्यादि ।
इन्द्रदेव ने सब सुनकर कहा कि बुड्ढे की बात भी सुन लेनी चाहिए । उससे कह भी
दिया गया है। उसको बुलवाया जाए ।
आज इसीलिए रामनाथ आए हैं , और साथ में लिवाते आए हैं तितली को । तितली इस
जन - समूह में संकुचित - सी एक खंभे की आड़ में आधी छिपी हुई बैठी है ।
इन्द्रदेव का संकेत पाकर रामनाथ ने कहना आरंभ किया
बार्टली साहब की नील - कोठी टूट चुकी थी । नील का काम बंद हो चला था । जैसा