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पृष्ठ:तितली.djvu/५३

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देखिए, यह तितली पहले मधुबन के साथ कभी-कभी आ जाती थी, खेलती थी। अब तो सयानी हो गई है। क्यों री, अभी तो ब्याह भी नहीं हुआ, तू इतनी लजाती क्यों है?— घूमकर जब उसने तितली की ओर देखकर यह बात कही, तो उसके मुख पर एक सहज गंभीर मुस्कान—लज्जा के बादल में बिजली-सी—चमक उठी। शैला ने उसकी ठोढ़ी पकड़कर कहा—यह तो अब यहीं आकर रहना चाहती है न, तुम इसको बुलाती नहीं हो, इसीलिए रूठी हुई है। तितली को अपनी लज्जा प्रकट करने के लिए उठ जाना पड़ा। उसने कहा—क्यों नहीं आऊंगी। बाबा रामनाथ ऊपर आ गए थे। उन्होंने कहा—अच्छा, तो अब चलना चाहिए। फिर राजकुमारी की ओर देखकर कहा—तो बेटी, फिर किसी दिन आऊंगा। राजकुमारी ने नमस्कार किया। वह नहाने के लिए नीचे उतरने लगी, और शैला तितली के साथ रामनाथ का अनुसरण करने लगी। गंगा के शीतल जल में राजकुमारी देर तक नहाती रही, और सोचती थी अपने जीवन की अतीत घटनाएं। तितली के ब्याह के प्रसंग से और चौबे के आने-जाने से नई होकर वे उसकी आंखों के सामने अपना चित्र उन लहरों में खींच रही थीं। मधुबन की गृहस्थी का नशा उसे अब तक विस्मति के अंधकार में डाले हए था। वह सोच रही थी_क्या वही सत्य था? इतने दिन जो मैंने किया, वह भ्रम था! मधुबन जब ब्याह कर लेगा, तब यहां मेरा क्या काम रह जाएगा? गृहस्थी! उसे चलाने के लिए तो तितली आ ही जाएगी। अहा! तितली कितनी सुंदर है! मधुबन प्रसन्न होगा। और मैं...? अच्छा, तब तीर्थ करने चली जाऊंगी। उह! रुपया चाहिए उसके लिए कहां से आवेगा? अरे जब घूमना ही है, तो क्या रुपए की कमी रह जाएगी? रुपया लेकर करूंगी ही क्या? भीख मांग कर या परदेश में मजूरी करके पेट पालूंगी। परंतु आज इतने दिनों पर चौबे! उसके हृदय में एक अनुभूति हुई, जिसे स्वयं स्पष्ट न समझ सकी। एक विकट हलचल होने लगी। वह जैसे उन चपल लहरों में झूमने लगी। रामदीन की नानी ने कहा—चलो मालकिन, अभी रसोई का सारा काम पड़ा है, मधुबन बाबू आते होंगे। राजकुमारी जल के बाहर खीझ से भरी निकली। आज उसके प्रौढ़ वय में भी व्ययविहीन पवित्र यौवन चंचल हो उठा था। चौबे ने उससे फिर मिलने के लिए कहा था। वह आकर लौट न जाए। वह जल से निकलते ही घर पहुंचने के लिए व्यग्र हो उठी। शेरकोट में पहुंचकर उसने अपनी चंचल मनोवृत्ति को भरपूर दबाने की चेष्टा की, और कुछ अंश तक वह सफल भी हुई; पर अब भी चौबे की राह देख रही थी। बहुत दिनों तक