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पृष्ठ:तितली.djvu/५५

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होकर ममता के आलोक में झलक उठा। वह तन्मय होकर सुना रही थी, जैसे उसकी चेतना सहसा लौट आई। अपनी प्यास बढ़ाकर उसने पूछा—क्यों सुखदेव! मुझे क्यों?

न पूछो भाभी! अपने दुख से जब ऊबकर मैं परदेस की किसी कोठरी में गांव की बातें सोचकर आह कर बैठता था, तब मुझे तुम्हारा ध्यान बराबर हो आता। तुम्हारा दुख क्या मुझसे कम है? और वाह रे निष्ठुर संसार! मैं कुछ कर नहीं सकता था? वह क्यों?

सुखदेव! बस करो। वह भूख समय पर कुछ न पाकर मर मिटी है। उसे जानने से कुछ लाभ नहीं। मुझे भी संसार में कोई पूछने वाला है, यह मैं नहीं जानती थी; और न जानना मेरे लिए अच्छा था। तुम सुखी हो। भगवान सबका भला करें।

भाभी? ऐसा न कहो। दो दिन के जीवन में मनुष्य मनुष्य को यदि नहीं पूछता—स्नेह नहीं करता, तो फिर वह किसलिए उत्पन्न हुआ है। यह सत्य है कि सब ऐसे भाग्यशाली नहीं होते कि उन्हें कोई प्यार करे, पर यह तो हो सकता है कि वह स्वयं किसी को प्यार करे, किसी के दुख-सुख में हाथ बंटाकर अपना जन्म सार्थक कर ले।

सुखदेव नाटक में जैसे अभिनय कर रहा था।

राजकुमारी ने एक दीर्घ निःश्वास लिया। वह निःश्वास उस प्राचीन खंडहर में निराश होकर घूम आया था। वह सिर झुकाकर बैठी रही। सुखदेव की आंखों में आंसू झलकने लगे थे। वह दरबारी था, आया था कुछ काम साधने; परंतु प्रसंग ऐसा चल पड़ा कि उसे कुछ साफ-साफ होकर सामने आना पड़ा।

उसकी चतुरता का भाव परास्त हो गया था। अपने को संभालकर कहने लगा—तो फिर मैं अपनी बात न कहूं? अच्छा, जैसी तुम्हारी आज्ञा। एक विशेष काम से तुम्हारे पास आया हूं। उसे तो सुन लोगी?

तुम जो कहोगे, सब सुनूंगी, सुखदेव!

तितली को तो जानती हो न!

जानती हूं क्यों नही; अभी आज ही तो उससे भेंट हुई थी।

और हमारे मालिक कुंवर इंद्रदेव को भी?

क्यों नहीं।

यह भी जानती हो कि तुम लोगों के शेरकोट को छीनने का प्रबंध तहसीलदार ने कर लिया है?

राजकुमारी अब अपना धैर्य न संभाल सकी, उसने चिढ़कर कहा—सब सुनती हूं जानती हूं तुम साफ-साफ अपनी बात कहो।

मैंने तहसीलदार को रोक दिया है। वहां रहकर अपनी आंखों के सामने तुम्हारा अनिष्ट होते मैं नहीं देख सकता था। किंत एक काम तम कर सकोगी?

अपने को बहुत रोकते हुए राजकुमारी ने कहा—क्या?

किसी तरह तितली से इंद्रदेव का ब्याह करा दो और यह तुम्हारे किये होगा! और तुम लोगों से जो जमींदार के घर से बुराई है, वह भलाई में परिणत हो जाएगी। सब तरह का रीति-व्यवहार हो जाएगा। भाभी! हम सब सुख से जीवन बिता सकेंगे।

राजकुमारी निश्चेष्ट होकर सुखदेव का मुंह देखने लगी; और वह बहत-सी बात सोच रही थी। थोड़ी देर पर वह बोली—क्यों, मेम साहब क्या करेंगी?