इंद्रदेव ने अपने गौरव पर और भी रंग चढ़ाने के लिए उपेक्षा से मुस्कुराकर कहा—तनिक भी नहीं। हां, मिस शैला की प्रसन्नता के लिए उनके उत्साह में भाग लेना मेरे लिए आदर की बात है। मुझे इस गुरुडम में कोई कल्याण की बात समझ में नहीं आती। मनुष्य को अपने व्यक्तित्व में पूर्ण विकास करने की क्षमता होनी चाहिए। उसे बाहरी सहायता की आवश्यकता नहीं।
आपकी यह बात मेरी समझ में नहीं आई। विकास अव्यवस्थित तो होगा नहीं। उसे एक सरल मार्ग से चलना चाहिए। आपका यही कहना है न कि मनुष्य पर मानसिक नियंत्रण उसकी विचार-धारा को एक संकरे पथ से ले चलता है—वह जीवन के मुक्त विकास से परिचित नहीं होता? किंतु जिसके व्यक्तित्व में अदृष्ट ने अपने हाथों से सहायता दी है, वह उन बाधाओं से अनजान है, जो संसार के जंगल में भटकने वाले निस्संबल प्राणी के सामने आती हैं।
फिर मुस्कुराकर वाट्सन ने कहा—स्वतंत्र इंग्लैंड में रह आने के कारण आप वाट्सन को हौवा नहीं समझते; किंतु मैं अनुभव करता हूं कि यहां के अन्य लोग मेरी कितनी धाक मानते हैं। उनके लिए मैं देवता हूं या राक्षस, साधारण मनुष्य नहीं। यह विषमता क्या परिस्थितियों से उत्पन्न नहीं हुई है?
इंद्रदेव को अपने सांपत्तिक आधार पर खड़ा करके जो वाट्सन ने व्यंग्य किया, वह उन्हें तीखा लगा। इन्द्रदेव ने खीझकर कहा—मेरी सुविधाएं मुझे मनुष्य बनाने में समर्थ हुई हैं कि नहीं, यह तो मैं नहीं कह सकता; किंतु मेरी संपत्ति में जीवन को सब तरह की सुविधा मिलनी चाहिए। यह मैं नहीं मानता कि मनुष्य अपने संतोष से ही सम्राट हो जाता है और अभिलाषाओं से दरिद्र। मानव-जीवन लालसाओं से बना हुआ सुंदर चित्र है। उसका रंग छीनकर उसे रेखा-चित्र बना देने से मुझे संतोष नहीं होगा। उसमें कहे जाने वाले पुण्य-पाप की सुवर्ण कालिमा, सुख-दुःख को आलोक-छाया और लज्जा-प्रसन्नता की लाली-हरियाली उद्भासित हो। और चाहिए उसके लिए विस्तृत भूमिका, जिसमें रेखाएं उनुक्त होकर विकसित हों।
वाट्सन अपने अध्ययन और साहित्यिक विचारों के कारण ही शासन-विभाग से बदलकर प्रबंध में भेज दिए गए थे। उन्होंने इंद्रदेव का उत्तर देने के लिए मुंह खोला ही था कि शैला अपनी दीक्षा समाप्त करके प्रणाम करने आ गई। वाट्सन ने हंसकर कहा-मिस शैला, मैं तुमको बधाई देता हूं। तुम्हारा और भी मानसिक विकास हो, इसके लिए आशीर्वाद भी।
इंद्रदेव कुछ कहने नहीं पाए थे कि अनवरी ने कहा—और मैं तो मिस शैला की चेली बनूंगी! बहुत जल्द!
इंद्रदेव ने उसकी चपलता पर खीझकर कहा—उसके लिए—अभी बहुत देर है मिस अनवरी।
फिर उसने अपने हाथ का फलों का गुच्छा आशीर्वाद-स्वरूप शैला की ओर बढ़ा दिया। शैला ने कृतज्ञतापूर्वक उसे लेकर माथे से लगा किया और इंद्रदेव के पास ही बैठ गई।
रामनाथ ने एक-एक माला सबको पहना दी और कहा—आप लोगों से मेरी एक और भी प्रार्थना है। कुछ समय तो लगेगा; किंतु आप लोग भी ठहरकर मेरे शिष्य मधुबन और