पृष्ठ:तितली.djvu/८१

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देखो महंगू, ये सब बातें मुंह से न निकालनी चाहिए। तुम जानते हो कि...

मैं जानता हूं कि नहीं, इससे क्या? वह जाए तो आप लिवा ले जाइए। मजूरी ही तो करेगी। आपके यहां छोड़कर मधुबन बाबू के यहां काम करने में कुछ पैसा बढ़ तो जाएगा नहीं। हां, वहां तो उसको बोझ लेकर शहर भी जाना पड़ता है। आपके यहां करे तो मेरा क्या? पर हां, जमींदार मां-बाप हैं। उनके यहां ऐसा...

मधुबन बाब। हूं, कल का छोकरा! अभी तो सीधी तरह धोती भी नहीं पहन सकता था। 'बाबा' तो सिखाकर चला गया। उसका मन बहक गया है। उसको भी ठीक करना होगा। अब मैं समझ गया। महंगू! मेरा नाम तुम भी भूल गए हो न?

अच्छा, आपसे जो बने, कर लीजिएगा। मैंने क्या किसी की चोरी की है या कहीं डाका डाला है? मुझे क्यों धमकाते हो?

महंगू भी अपने अलाव के सामने आवेश में क्यों न आता? उसके सामने उसकी बखारें भरी थीं। कुंडों में गुड़ था। लड़के पोते सब काम में लगे थे। अपमान सहने के लिए उसके पास किसी तरह की दुर्बलता न थी। पुकारते ही दस लाठियां निकल सकती थीं। तहसीलदार ने समझ-बूझकर धीरे-से प्रस्थान किया।

महंगू जब आपे में आया तो उसको भय लगा। वह लड़कों को गाने-बजाने के लिए कहकर बनजरिया की ओर चला। उस समय तितली बैठी हुई चावल बीन रही थी; और मधुबन गले में कुरता डाल चुका था कहीं बाहर जाने के लिए। मलिया, एक डाली मटर की फलियां, एक कद्दू और कुछ आलू लिये हुए मधुबन के खेत से आ रही थी। महंगू ने जाते ही कहा—मधुबन बाबू! मलिया को बुलाने के लिए छावनी से तहसीलदार साहब आए थे। वहां उसे न जाने से उपद्रव मचेगा।

तो उसको मना कौन करता है, जाती क्यों नहीं?—कहकर मधुबन ने जाने के लिए पैर बढ़ाया ही था कि तितली ने कहा—वाह, मलिया क्या वहां मरने जाएगी!

क्यों जब उसको छावनी के काम करने के लिए, फिर से रख लेने के लिए, बुलावा आ रहा है, तब जाने में क्या अड़चन है?—रुकते हुए मधुबन ने पूछा।

बुलावा आ रहा है, न्योता आ रहा है। सब तो है, पर यह भी जानते हो कि वह क्यों वहां से काम छोड़ आई है? वहां जाएगी अपनी इज्जत देने? न जाने कहां का शराबी उनका दामाद आया है। उसने तो गांव भर को ही अपनी ससुराल समझ रखा है। कोई भलामानस अपनी बहू-बेटी छावनी में भेजेगा क्यों?

महंगू ने कहा-हां बेटी, ठीक कह रही हो। पर हम लोग जमींदार से टक्कर ले सकें, इतना तो बल नहीं। मलिया अब मेरे यहां रहेगी तो तहसीलदार मेरे साथ कोई-न-कोई झगड़ा-झंझट खड़ा करेगा। सुना है कि कुंवर साहब तो अब यहां रहते नहीं। आज-कल औरतों का दरबार है। उसी के हाथ में सब-कुछ है।

मधुबन चुप था। तितली ने कहा—तो उसे यहीं रहने दो, देखा जाएगा।

महंगू ने वरदान पाया। वह चला गया।

मलिया दूर खड़ी सब सुन रही थी। उसकी आंखों से आसूं निकल रहे थे। तितली ने कहा—रोती क्यों है रे, यहीं रह, कोई डर नहीं, तुझे क्या कोई खा जाएगा? जा-जा देख, ईंधन की लकड़ी सुखाने के लिए डाल दी गई है, उठा ला।