सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:तिलस्माती मुँदरी.djvu/१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१५
तिलिस्माती मुँदरी


उगा हुआ था, उन्होंने अपनी चोंच से पेड़ की पीड़ में खोंटें मार कर उस पर कान लगाया तो उसके अन्दर मैंडक के बोलने की आवज़ सुनाई दी। तब उन्होंने उस अनार के चन्द दाने जो कि नीचे बिखरे हुए थे निगल लिये और एक २ फल साथ लेकर चट्टान की चोटी पर पहुंचे, जिसे उन्होंने सब्जी या जानवरों से बिलकुल खाली पाया और जिस पर कि उन चिड़ियों की ठटरियां और हड्डियां तमाम फैली हुई थीं जो कि चट्टान के ऊपर उड़ने में उस ज़हर के पेड़ की बू से मर गई थीं। चट्टान के सब से ऊंचे हिस्से पर कौओं ने देखा कि एक छोटा सा अधूरा उगा हुआ पेड़ है जिसकी छाल से एक स्याह रंग का गोंद टपक रहा है। एक कौए ने उसमें से थोड़ा सा गोंद ले लिया और मय अनारों के दोनों कौए महल की तरफ़ रवाना हुए। एक अनार उन्होंने महल के बाग़चे में एक झाड़ी के अन्दर गिरा दिया और दूसरा मय गोंद के जाकर रानी को दिया। रानी ने उसी दम अनार का एक दाना निगल लिया और एक दाना बब्बू को जो कि उसके पास था दिया, ताकि गोंद की बू से उसे ज़हर न चढ़ जाय। गोंद को रानी ने एक सोने की डिब्बी में बन्द करके रख लिया।

रानी से जब छुट्टी पाई, कौए सीधे राजा की लड़की के कमरे की खिड़की का दौड़े, वहां उन्होंने तोते को पाया और उसे ज़हरीले, गोंद और अनारों का सब हाल सुना दिया। उन सभी को यकीन हो गया कि अब राजा की लड़की को दुबारा ज़हर देने की तदबीर की जावेगी और उस तदबीर को बेकाम करने के लिये उन्होंने भी तजवीज़ की। कौए उस अनार को जो कि वह जंगल से लौटती दफ़ा बाग़चे में एक झाड़ी में गिरा पाये थे, उठा लाये, तोते ने उस में एक छेद करके एक दाना आप खा लिया और फिर उस अनार को