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तिलिस्माती मुँदरी


से बाहर उड़ गये थे और रानी की खिड़की के ऐन सामने एक पेड़ पर जा बैठे थे। रानी उस वक्त खिड़की के पास बैठी हुई अपने बच्चे से खेल रही थी कि बच्चे ने अंगूठी को उसकी उंगली से खींच लिया और खिड़की के दरवाज़े की तरफ़ लुढ़का दिया और वह बाहर की तरफ़ ज़मीन पर जा पड़ी। रानी यह देख वहां से फ़ौरन उठकर किसी गुलाम को उसके उठा लाने का हुक्म देने के लिए चली गई। इतने में कौओं ने झट अंगूठी को बगैर किसी को मालूम हुए ले लिया और राजा की लड़की के पास दाखिल किया। राजा की लड़की को बड़ी खुशी हुई कि अब वह फिर अपनी प्यारी चिड़ियों से बखूबी बात चीत कर सकती थी और जब उसने ज़हरीले गोंद और उसका असर रफ़ा करने वाले ज़हरमोहरे का हाल सुना, उस चपाती के खाने में कुछ भी खौफ़ न किया और खूब अच्छी तरह खा कर अपने विस्तर पर सो रही।

सुबह को बब्बू देखने आया कि लड़की मरी या नहीं और उसे बड़ा तअज्जुब हुआ जब कि उसको ज़हर देने के बाद भी जीता पाया। वह वहां से चुपका ही लौट गया और रानी से जो कि उस वक्त बाग़ में अपनी खिड़की के नीचे अंगूठी की तलाश में लगी हुई थी हाल बयान किया। इधर तोते ने एक कौए को रानी और बब्बू की बात चीत सुनने को रवाना किया और कौआ चालाकी से रानी के पास एक झाड़ी में छुपकर उनकी गुत्फगू सुनने लगा। रानी को लड़की के ज़हर के असर से बच जाने पर बहुत ही तअज्जुब हुआ और बोली कि लड़की के पास ज़रूर कोई तिलिस्म या जादू होगा और बब्बू को हुक्म दिया कि “कुछ हो, तू आज रात को उसे महल के उत्त छज्जे पर ले जाकर जो कि ऐन झील के ऊपर है वहां से नीचे झील में ढकेल दे और गर्दन में एक पत्थर बांध