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तिलिस्माती मुँँदरी


कौए भी जितने काग उनसे चल सके लेकर उसके पीछे हुए और वह तीनों वफ़ादार चिड़ियां लड़की के पास कागों के पहुंचाने में बराबर लगी रहीं जब तक कि उसके पास उतने काग हो गये जितने दरकार थे। राजा की लड़की ने कागों को काट २ कर एक मज़बूत डोरी में पिरो लिया और फिर माहीगीर ने जैसा कहला भेजा था वैसा ही किया, यानी उनको अपने बदन से खूब लपेट लिया और ऊपर से कुर्ती पहन ली। जब यह सब हो चुका शाम का अंधेरा चारों तरफ़ छा गया था और बब्बू ने आकर राजा की लड़की से कहा "मेरे साथ आओ"।

बब्बू राजा की लड़की को हाथ पकड़ कर बाग़ के रास्ते झील के ऊपर वाले छज्जे पर ले गया। बाग़ में होकर जब वह दोनों जा रहे थे उसने एक बड़ा पत्थर उठा कर एक रूमाल में लपेट लिया और जब वह छज्जे पर पहुंचे झट वह रूमाल राजा की लडकी की गर्दन में बांध दिया और साथ ही मुंह पर हाथ रख दिया ताकि लड़की चिल्ला न सके और बस उसे उठा कर झील में गिरा दिया। लेकिन वह इसके लिये पेश्तर ही से तैयार थी। जिस वक्त कि बब्बू ने उसे नीचे गिराने को उठाया उसने एक लमहे में चाकु से रूमाल को काट डाला और पत्थर और वह दोनों पानी में एक साथ ही गिरे। पत्थर तो झील की थाह में चला गया मगर राजा की लड़की अपनी ज़ाकट की बदौलत पानी की सतह पर तैरती रही। इस वक्त बिलकुल अंधेरा था। बब्बू ने जो उसके गिरने की आवाज़ सुनी और उसके बाद पूरी ख़ामोशी देखी समझा कि लड़की झील की तह में दाख़िल हुई और रानी को अपनी बदकारी का हाल सुनाने चला गया। उधर ऐन छज्जे के नीचे माहीगीर अपनी कश्ती लिये छुपा हुआ था