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तिलिस्माती मुँदरी


लेगी इस लिये तुम्हारा यहां रहना ख़तरे से ख़ाली नहीं। हम तुम्हें किसी हिफ़ाज़त की जगह भेजे देते हैं"।

जब कि कोतवाल की बीबी राजा की लड़की से बातें कर रही थी और राजा की लड़की अपने मिहर्बानों से जुदा होने के ग़म और खौफ से रो रही थी कोतवाल को राजा का बुलावा आया। राजा उस वक्त लड़ाई के मैदान से भाग कर अपने महलों में आ सभा के दर्मियान सुलह की शर्तों का बिचार कर रहा था। सभा बहुत थोड़ी देर तक रही और कोतवाल जल्द वापस आया और यह ख़बर लाया कि दुश्मन ने यह शर्त की है कि अगर इस वक्त उसे बहुत सा रुपया दिया जाय और आगे को खिराज देने का क़रार किया जाय तो शहर पर चढ़ाई न की जायगी। लेकिन रुपया जो मांगा था इतना ज़ियादा था कि वह तमाम शहर का ज़र, ज़ेवर और दूसरा असबाब देने से पूरा हो सकता था। कोतवाल कहने लगा कि "अपना सारा माल दे डालने से हम सब बिल-कुल ग़रीब हो जायंगे लेकिन हमारी जान और शहर बच जायगा"। इस बात को सुन कर दयादेई बोली--"तो ऐ पिता, चांदनी को अब दूसरी जगह भेजने की ज़रूरत नहीं है, यहां अब उसको कुछ खौफ़ न रहेगा"-यह सुन कर कोतवाल बहुत उदास हुआ और कहने लगा कि "हमारे सारे पड़ोसी जानते हैं कि हमने बहुत रुपया देकर एक लौंडी ख़रीदी है, इस लिये हमारे असबाब के साथ वह भी ले ली जायगी, क्योंकि माल के वास्ते शहर में हर एक घर की जब तलाशी होगी हम उसे घर के भीतर कहां छिपा सकेंगे और शहर के बाहर भी कहीं नहीं भेज सकते क्योंकि शहर को फ़ौज के सिपाही सब तरफ़ घेरे पड़े हैं"। इतना कह कर कोतवाल बाहर चला गया और उनका सोच उसकी बात को सुनकर