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पृष्ठ:तिलस्माती मुँदरी.djvu/४७

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तिलिस्माती मुँदरी


जाय। लेकिन उन्हें बहुत से मकानों को पहले तलाशी लेनी थी और शाम का अंधेरा होने के पहले ही कोतवाल की बीबीं और राजा की लड़की ने रेशम की रस्सी से एक खासी काफ़ी लम्बी सिड्ढी बना ली जो इतनी मज़बूत थी कि लड़की का बोझा बरदाश्त कर सके। जैसे ही अंधेरा हुआ कोतवाल की बीबी और वह दोनों लड़कियांँ तोते के साथ पोशीदा तौर से बाग़ में गईं और वहां एक ऊंची जगह पर चढ़ गई जहां से कि मंदिर के खंडहर में पहुंच सकती थीं। जो कि बाग़ की चहारदीवार से बिलकुल मिला हुआ था। बाग़ में उन्हें एक लकड़ी की सिड्ढी मिल गई जिसके ज़रिये से वह बाग़ के बाहर उतर गई। तोते ने कौओं से पहले ही दिखवा लिया था कि बाग़ में कोई नहीं है और वह जगह सब तरह महफूज़ है। जब वह मीनार के नीचे पहुंचे राजा की लड़की ने रेशम की सिड्ढी जो कि उसने एक छोटी लकड़ी पर लपेट ली थी कौओं को दे दी और उन्हें उसे लेकर ऊपर उड़ जाने को कहा। दोनों कौओं ने दोनों सिरे लकड़ी के अपने पंजों में पकड़ लिये और ऊपर ले जाने की कोशिश की लेकिन हालां कि रेशम की रस्सी इतनी पतली थी सिड्ढी का एक बहुत छोटा बंडल बन गया था, तो भी उन बेचारी चिड़ियों के लिये वह बहुत भारी था इस से वह फटफटाती हुई नीचे आ पड़ीं। तोता उनको मदद देने चला, लेकिन वह ऐसा भद्दा उड़ने वाला था कि उन के बीच में आ गया और मुआमिला और भी बिगाड़ दिया। तब वह बड़े नाउम्मेद हो गये और बाग़ को लौटने ही को थे कि उन्हों ने एक बड़ी चीख़ ठीक अपने सिर के ऊपर सुनो और जो ऊपर को नज़र की तो देखा कि एक बड़ा परन्द बुर्ज की तरफ़ उड़ा जा रहा है और जाकर उसकी