बहुत हिलते डुलते थे और उतरने वाले अक्सर पैर चूकने से उनपर से गिर कर मर जाते थे।
सैकड़ों बरस की बात है इस गंगोत्री के नज़दीक एक छोटी झोंपड़ी में एक योगी रहता था। उम्र उसकी ५० से ज़ियादा और ४५ से कम न थी, पर देखने में वह बहुत ही बूढ़ा जान पड़ता था। डील उसका लम्बा, रंग गोरा, चिहरा आर्यों का सा, माथा ऊँचा था, और एक बड़ी भूरी डाढ़ी उसकी चौड़ी छाती को ढकती हुई नाफ़ तक लटकती थी। उसके सारे बदन पर ग़ौर करने से ऐसा मालूम होता था कि वह जवानी में बड़े आराम से रहा होगा, मगर माथे पर की सिकड़ी हुई लकीरों से और भवों के भीतर गड़ी हुई आंखों से ऐसा ख़याल होता था कि कोई बड़ा भारी दुख इस आदमी के योगी हो जाने का सबब हुआ है।
यह योगी चिड़ियों और जानवरों पर बहुत मुहब्बत रखता था, उन्हें आदमी की तरह चाहता था और वह इसके मिज़ाज को यहां तक जान गये थे कि हत्यारे जानवर भी दूसरे जानवरों की तरह इसके पास आने में डर नहीं खाते थे और न इस को किसी तरह का नुकसान पहुंचाते थे।
एक दिन शाम को यह योगी आसन पर बैठा हुआ अस्ताचल के पीछे डूबते हुए सूरज की सजावट को देख रहा था कि उसकी नज़र दो कौओं पर पड़ी जो कि उड़ते उड़ते खिलवाड़ कर रहे थे। लड़ते लड़ते एक उनमें से गंगा जी की धारा में गिर पड़ा। वहां पर बहाव ज़ोर का था और उसके पंख भीग कर इतने भारी हो गये थे कि उड़ने की ताकत न रख कर वह बह चला और ज़रूर डूब जाता, लेकिन योगी
ने पानी में धस झट अपनी कुबड़ी की चोंच से उसे बाहर