पृष्ठ:तिलस्माती मुँदरी.djvu/६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
६६
तिलिस्माती मुँदरी


लिये गये और उन्हें महलों के पास एक उमदा मकान रहने। के लिये दे दिया गया ताकि राजा की लड़की दयादेई से रोज़ मिल सके और दोनों अपना बहुत सा वक्त एक दूसरी की लुहबत में बिता सकें। अपने पुराने मददगार मिहर्बान बुड्ढे माहीगीर को-भी वह नहीं भूली-उसे उसने महाराज से सिफ़ारिश करके राजघराने की कश्तियों का दारोग़ा बनवा दिया।

लेकिन सब से ज़ियादा तारीफ़ का काम जो राजा की लड़की ने किया यह था कि अपने नाना से कह कर उन सब लड़कियों और लड़कों को जो लौंडी और गुलाम के तौर पर लाहौर से लाये गये थे फिर लाहौर को वापस भिजवा दिया। कश्मीर की रानी को कि जिसकी शरारत से उस लड़की को इतनी मुसीबतें उठानी पड़ी थीं राज के कानून से उसकी बुरी हरकतों के वास्ते फांसी की सजा मिलनी चाहिये थी लेकिन राजकुमारी ने इतनी सख्त सज़ा उसको न होने दी, उसे सिर्फ़ जनम कैद दी गयी और राजधानी से बहुत दूर एक पुराने किले में आराम के साथ उसके रहने का बन्दोबस्त करा दिया गया, और उसका लड़का संस्कृत का इल्म हासिला करने के लिये बनारस भेज दिया गया। बब्बू की भी जान बख़्श दी गयी-लेकिन वह कश्मीर से निकाल दिया गया।

महाराज अपनी दीहती के शादी के लायक होने तक कश्मीर में राज करते रहे। जब वह १८ बरस की हुई उसकी शादी लाहौर के राजा के बड़े लड़के से कर दी गयी। जब से राजकुमारी की सिफ़ारिश से वह लौंडी गुलाम जिन्हें लाहौर से कश्मीर की रानी की फ़ौज पकड़ लाई थी फिर लाहौर को भेज दिये गये थे तब से लाहौर के राजा और कश्मीर के महाराज में बड़ी दोस्ती पैदा हो गयी थी, और लाहौर का