पृष्ठ:तिलस्माती मुँदरी.djvu/७

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तिलिस्माती मुँदरी


पल भर में योगी की नज़र से गायब हो गये। कई दिन तक योगी ने उनको न देखा। एक दिन वह शाम को अपनी मढ़ी के दरवाज़े पर बैठा था, उसे दो काले दाग़ से दूर आसमान में दिखाई दिये, वह उसकी तरफ़ आ रहे थे और जब नज़दीक आ गये वही दोनों कोए निकले। आकर वह उसके पास एक तिपाई पर जो वहां पड़ी थी बैठ गये और उनमें से एक अपने कश्मीर जाने का नतीजा यों सुनाने लगा-

"ऐ महाराज, हम आप के लिये बुरी ख़बर लाये हैं। रानी यानी आप की बेटी तो इस दुनिया से कूच कर गई है और एक लड़की छोड़ गई है। राजा ने दूसरा ब्याह कर लिया है। पर पहली रानी के तोते से जो कुछ हमने सुना उस से जाना कि नई रानी आप की दोहती को विलकुल नहीं चाहती, बल्कि उसे दुश्मनी की नज़र से देखती है और यह भी डर है कि जब राजा अब की बार शहर से दूर शिकार हो जायगा यह बेरहम सनी उस बग़ैर मां की बेगुनाह बच्ची को मरवा डालेगी या किसी दूसरी तदबीर से अलहदा कर देगी"।

उस बूढ़े बैरागी को यह बात सुन कर बड़ा दुख हुआ और फ़िक से रात को नींद न आई। सवेरा होने पर राज़ की तरह वह कौए नदी किनारे जब फिर उड़ने आये, योगी ने उन्हें फौरन अपने पास बुलाया और कहा-“ऐ नेक चिड़ियो, यह अंगूठी मेरी दोहती को जाकर दो और कहो कि जब उसे किसी तरह की मदद या सलाह की ज़रूरत पड़े वह इसके ज़ोर से चाहे जिस चिड़िया को बुला लिया करे हर एक चिड़िया उसे अपनी ताक़त भर मदद देगी-बस मैं अपनी प्यारी दोहती को सिर्फ़ इतनी ही मदद पहुंचा सकता हूं"-और आंखों में आंसू भर अंगूठी कौओं को देदी-कौए यह कह कर कि- "बहुत अच्छा महाराज़, हम आपके हुक्म के