पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/११९

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१०८ तुलसी की जीवन-भूमि कहि कबीर गुलामः घर का जीआइ भावै मारि । [संत कबीर, पृ०७२] बनारस या मगहर कहीं भी कबीर जी का जन्म हुआ हो, किंतु न उनका घर अवध में था और न था वहाँ कहीं उनका जन्म स्थान, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है । अवतारवाद के विरोधी होने के कारण अवध से वे उस प्रकार का भावात्मक नाता भी नहीं जोड़ सकते थे जैसा तुलसीदास । इसलिए उपर्युक्त पंक्तियों से जो निष्कर्ष पांडे जी ने निकाला है, उस से सहमत होने में कठिनाई प्रतीत होती है। [तुलसीदास, ४० सं०, पृष्ठ १४०-१] इसमें संदेह नहीं कि पांडे जी के उक्त निष्कर्ष से सहसा सहमत हो जाना सरल नहीं । किंतु डा० गुप्त की उक्त कठिनाई का कारण शब्दशक्ति की सच्ची परख का अभाव और किसी पक्ष को झट उपेक्षणीय समझ लेने की फुर्ती का प्रभाव ही गोचर होता है। अपने पक्ष के प्रतिपादन के पहले ही हम यहीं इतनी और स्पष्ट कर देना उचित समझते हैं कि उक्त डाक्टर साहब की दृष्टि में- इसी प्रकार श्री रजनीकांत शास्त्री 'विनय-पत्रिका' की निम्नलिखित पंक्तियों से

दियो सुकुल जनम सरीर सुंदर हेतु जो फल चारि को।

जो पाई पंडित : परम पद पावतं पुरारि मुरारि को । यह भरतखंड समीप सुरसरि थल भलो संगति भली। तेरी कुमति कायर कलप वल्ली चहति विषफल फली ।। ' [विनय० १३५ ]