पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१३७

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१२६ तुलसी की जीवन-भूमि हाँ, यह सत्य है कि राम ने ललक में आकर बड़े उल्लास से पुष्पक विमान पर बैठे-बैठे कहा था- सुनु कपीस अंगद लंकेसा । पावन पुरी रुचिर यह देसा । जद्यपि सब वैकुंठ वखाना । वेद पुरान विदित जगु जाना । अवधपुरी सम प्रिय नहि सोजा येह प्रसंग जानइ कोउ फोऊ । जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि । उत्तर दिमि मह सरऊ पावनि । जा मन्नन ते विनहि प्रयाठा । मम समीप नर पावहिं बासा । अति प्रिय मोहि इहाँके वासी । मम धामदा पुरी सुखरासी । हरपे सब फपि सुनि प्रभु बानी । धन्य अवय जो राम बखानी । किंतु विधि की विडंबना का प्रसार तो देखिए कि आज- धन्य अवध जो राम बखानी । की धन्यता का प्रसार हो रहा है 'राजापुर में। और किस भाव से इसका 'सांकेतिक अर्थ' लगाया जा रहा है तुलसी के पक्ष में 'राजापुर' । समझ में नहीं आता है कि आज यह धड़-पकड़ कैसी। हमारी दृष्टि में तो सचाई यह है कि वस्तुतः 'अवधपुरी' ही तुलसी की जन्मभूमि और 'अवध' ही उनका 'जन्मदेश' है। अच्छा होगा 'अनन्य' की वाणी को एक बार फिर कंठ कर लें। स्पष्ट कहते हैं- 'कोसल देस उजागर कीनौ । सबहिन को अद्भुत रस दीनौ । छिन छिन उमगे प्रेम नत्रीनौ । उमड़ि घुमहि झर लाइ रंगीनौ ॥८८|| और इस 'रंग' के प्रसंग में किसी अवसर के लिए कृपया इतना और टॉक लें कि मानस' के 'तापस' एक सखी. की भाँति ही 'गीतावली में एक 'सस्त्री' भी है जिसकी खोज श्री ज्ञानवती त्रिवेदी ने ली थी और जिसके विषय में कभी 'कल्याण' में कुछ लिखा भी