पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१५३

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१४५ प्रकार है: तुलसी की जन्म-दशा तुलसी सो साहिय समर्थ को मु सेवफ है

' नुनत सिहात सोच विधि हू गनफःको ।

नाम राम राघरो सयानो फिी वायरो जों फरत गिरी ते गरु तिन ते तिनफ फो।। ...[कविता०, उच्चर०.७३ ] एक और दूसरा छंद उसी अंध का इस प्रकार है: मातु पिता नग नाय तज्यो विधि हून लिखी फछु भाल भलाई । नीच निरादर भानन फादर 'क्कर टूपनि लागि ललाई । राम सुभाउ सुन्यो तुलसी' प्रभु सो फलो घारफ पेट खलाई। स्वारथ को परमारय को रघुनाथ सो साहब खोरिन लाई ।। [कविता०, उत्तर०५७] और विनय-पत्रिका' का एक पद इस राम नाम राबरोई हित मेरे । स्वारथ परमारथ साथिन्ह सौ भुन उठाइ कहाँ टेरे।। जननी जनक तज्यो जनमि फरम विनु विधिहु सृज्यो भवडेरे। मोहुँ से कोउ फोउ फहत रामहि फो सो प्रसंग केहि फेरे ।। फिरयो ललात बिनु नाम उदर लगि दुखउ'दुखित मोहि हैरें। नाम प्रसाद लहत रसाल फल अंब हौं बबुर 'बहेरे । [विनयः २२५] उसी का एक अन्य पद इस प्रकार है: द्वार द्वार दीनता कही फाढ़ि रद परि पा हूँ। हैं दयालु दुनि दस दिसा: दुख दोप दलन छम फियो न संभाषन काहूँ ।। तनु जन्यो कुटिल फीट.ज्यों तज्यो मातु पिता हूँ। फाहे को रोस दोस-फाहि धौं मेरे ही अभाग मो सो संकुचत छुइ छाहूँ। दुखित देखि संतन करो सोचै जनि मन माहूँ. १०