पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१६२

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. . तुलसी का जन्म-दशा १५६ काहे को रोस दोस काहि धौ मेरे ही अभाग मो सौ सकुचत छुइ छाहूँ। यह तो सामान्य प्राणी की बात ठहरी । तुलसी ने किस वेदना से 'माता-पिता का नाम लेने से पहले ही खुल कर कह दिया था- हैं दयाल दुनि दस दिसा दुख दोष दलन छम कियोन समापन काहूँ। बात समझने की है। तुलसी अपनी भाषा में कुछ कहा चाहते हैं। इतिहास इस बात की साखी भर रहा है कि उसके पन्नों में कहीं तुलसी का नाम नहीं । क्यों ? क्यों मुगलकालीन इतिहास इनको नहीं जानता ? यहाँ तक कि इनके 'बंदीगृह में बंद होने का भी कहीं उल्लेख नहीं। साक्षरों का समाधान कुछ भी हो, अपने राम को तो यह सूझता है कि वस्तुतः इसके मूल में है तुलसी से मुगल का जन्म- जात विरोध । जहाँ तक बुद्धि काम करती है हम को तो यही दिखाई देता है कि वास्तव में प्रकृत पद में स्थिति आप ही बोल उठी है। सुनने को अतीत का कान चाहिए । उसके अभाव में ही हम इसके मर्म से दूर रहे हैं। हमारी दृष्टि में तुलसी के तनु जन्यो कुटिल कीट न्यों तज्यो का अर्थ है- अपनी संतान को इस प्रकार छोड़ दिया जिस प्रकार सर्पको। भाव यह कि जव तुलसी का जन्म हुआ तब रामभक्तों में आनंद की लहर दौड़ उठी और 'धधावनो घजायो' की धूम हुई। धूम-धाम के कारण माता-पिता राजदंड स्थिति का बोध दहल उठे और समझ गए कि आगे क्या होनेवाला है। फलतः उन्होंने बच्चे को अपने से अलग कर दिया और तुलसी 'जन्मस्थान से दूर जा पड़ा। माता-पिता: तलवार के घाट उतर गए अथवा कालवश