पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/१७७

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२७४ तुलसी की जीवन-भूमि - . चगताई मोवरिख बनिये की जात को गरीव समझकर जो चाहे सो कहें मगर इसके कवायद बन्दोबस्त दुरुस्त और अहकाम ऐसे चुस्त हो गए थे कि पतली दाल ने गोश्त को दवा लिया । अफगानों में जो वाहम कशाकशी और इन्तजामी रही उसमें वह एक जंगी और वाइक- थाल राजा बन गया। अदली की तरफ से लश्कर जर्रार लिए फिरता था, कहीं धावा मारता था, कहीं मुहासिरा करता था, और किला बन्द 'करके वहीं डेरे डाल देता था। अलबत्ता यह कवाहत जरूर हुई कि बिगड़े दिल अफगान उसके अहकाम से तंग आकर न फकत उससे बल्कि अदली से भी बेजार हो गए। [दरबार अकबरी, पृष्ठ ८४३] हेमचंद्र विक्रमादित्य' वा मुगली वानी में 'हेमू बक्काल के अस्त का प्रभाव तुलसी के मानस पर क्या पड़ा, इसे कौन कहे ? किंतु 'सूर' वंश के पराभव और 'चगताई' नरहरि की ग्लानि वंश के उदय का प्रभाव 'नरहरि' पर यह पड़ा कि 'मुगल' का निमंत्रण भी उनके संतापका कारण हुआ। कवि की ग्लानि ठहरी। पश्चाताप की वेदना में कहता है- सेरन साहि सलेम पुहुमि एक छत्र राजु किम । तिन.मोहि कह करि कृपा मानु धनु खिति खिताबु दिन ।। तिन्ह के मरत नहि मुएउ लाज गहि वनन सिघाएउ । तिन्दकि सुतन परि बिपति तहाँ केहु काम न आएउ ।। एहि लाज गहेउ जगदीस दरु नरहरि चल तन चिच सुष । फिरि फेरि बोलावहि साह मोहि सो आनि दिखावउ कौन मुप ॥१०॥ [अकबरी दरबार के हिंदी कवि, पृष्ठ ३२६ ]