पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२५५

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२५२ तुलसी की जीवन-भूमि कहीं अच्छा होता यदि डा रामदत्त भारद्वाज जी यह बताने की कृपा करते कि 'सोरों का गजटियर और सोरों-संबंधी वाजि- बुलं अर्ज की अर्ज भी सोरों के अनुकूल सोरों का सरकारी पक्ष · पड़ती है' वा नहीं। पता नहीं 'राजापुर का गजटियर' यदि 'राजापुर के लिये प्रमाण है सो 'सोरों का गजटियर' सोरों लिये प्रमाण क्यों नहीं ? यही बात 'वाजिबुल अर्ज की अर्ज की भी है। राजापुर की वाजिबुल अर्ज की अर्ज है कि 'माफीदारान चेला गो० तुलसीदास की सन्ताने छै सै अठासी रुपया चौदह पाना हकूक पाते हैं। किंतु 'सोरों की वाजिबुल अर्ज की अर्ज क्या है पहले इसे तो देख लेने का कष्ट करें। उसके अभाव में सोरों में तुलसी का घरगर कैसा रहा सोरों का गजदियर । सो उसमें तो कहीं तुलसीदास का नाम तक नहीं दिखाई देता। हाँ, उलटे सिद्ध यह अवश्य किया जाता है उसमें कि वहाँ का प्रसिद्ध सीता राम जी का मंदिर अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ के समय में था ही नहीं जो उसे औरंगजेब तोड़ता । सोरों की सारी सामग्री पर पानी फेरने के लिए इतना पर्याप्त है । हम सोरों से सोरों के पक्ष का सरकारी प्रमाण चाहते हैं और मानते हैं कि राजापुर की जनश्रुति सूकरखेत (धाघरा-सरयू-संगम) के पक्ष की थी जिसे भ्रांति वा नीतिवश सोरों के सिर मढ़ दिया गया। स्मरण रहे, गजेटियर में यही कहा गया है कि संत तुलसी 'सोरों' से आया था कुछ यह नहीं कि वहीं वह जन्मा था। उसकी स्पष्ट शब्दावली है- ए रेजिडेंट ऑव सोरों इन कासगंज तहसील आव द एटा .डिस्ट्रिक्ट । यहीं यह भी स्मृति में बना रहे कि इसका आरंभ होता है-