पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/३२

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श्री गोसांई-चरित्र का महत्त्व १५ प्रेम पंथ अति दूर, ऊँचो सातौ स्वर्ग ते । चढ़ो एक मनसूर, सूरी सीढ़ी लाइ कै ॥ १ ॥ है हरि रस परिपूर, दरस गोसाई को लह्यौ। धन्य. धन्य भनसूर, नाम सत्य अपनो कियौ ॥२॥ करि आदर सनमान, कीन्ह प्रसंसा विविध विधि । बहु प्रकार को ज्ञान, दे सिक्ष्या निज कर लियो ।। ३ ।। [.चरित्र, पृष्ठ १३०] इतना ही नहीं। आगे का उपदेश तो और भी विचारणीय है। लीजिए- लोहकीन लोहार की, गति नहिं जात विचार । जो सिर धारै सीख के, ताही की वह वार ॥१॥ ऊँच नीच फोऊ नहीं, हरि रस प्रेम पियूख । तुलसी काम मयूष ते; लागै कौनउ रूख ॥ २ ॥ जेहि सरीर रति रामं सो, तेहि आदरहिं सुजान । रुद्र देह तजि नेह बस, बानर मे हनुमान ॥ ३ ॥ वही, पृष्ठ १३०] तो क्या 'ख्वाजा मसूर' से गोस्वामी तुलसीदास का कोई गहरा लगाव न था ? कैसे कहा जाय ? किंतु 'चरित्र' के 'सूरी सीढ़ी लाइकै को इसके अभाव में समझा कैसे जाय ? स्मरण रहे, तुलसी का एक स्वतंत्र दोहा भी है। कहते हैं किस विषाद से- गोंड गँवार नृपाल महि, यमन महा महिपाल । सामन दाम न भेद कलि; केवल दंड कराल ॥५५९॥ [ दोहावली] "केवल दंड कराल' के साथ ही इस अनय पर भी तो ध्यान “दें । कथन तुलसी का ही है । लीजिए । घोल ही तो पड़े- .