पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/४४

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२-वार्ता में तुलसीदास गोस्वामी तुलसीदास के अध्ययन में 'वार्ता' का महत्त्व 'सोरों सामग्री की कृपा से बहुत कुछ बढ़ गया है और बुझती हुई आग को हवा देकर जिलाया जा रहा है। हम रूप परिवर्तन अभी उसके बारे में कुछ नहीं कहते । हाँ, इतना निवेदन कर देना चाहते हैं कि इस क्षेत्र में एक ऐसा भी प्राणी है जो अपनी सरल शैली में धीरे से कह जाता है- . व्यास जी का प्रथम बार वृदावन जाने का समय सं० १५९१ निकलता है, और अंतिम बार वे संवत् १६१२ में बूंदावन गये तथा जीवनपर्यंत वहीं पर रहे। गोस्वामी तुलसीदास जी का श्रृंदावन जाने का काल निम्नलिखित ग्रंथों में तद्विपयक प्रसंगों की समीक्षा करने पर अलग-अलग समय में प्रकट होता है--- १, मूल गोसाई चरित के अनुसार संवत् १६४९ के लगभग । २. दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता से संवत् १६२६ के लगभग । उपरोक्त दोनों संवत्तों में व्यास जी का श्रृंदावन में ही निवास था। इन ग्रंथों में कृष्ण-द्वारा गोस्वामी तुलसीदास की अनन्य राम-भक्ति के प्रण की रक्षा के लिए धनुष-बाण धारण करने की घटना का उल्लेख किया गया है। किंतु इस घटना के चमत्कार का श्रेय दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता में नंददास की भक्ति को दिया गया है । मूल गोसाई चरित में वह गोस्वामी तुलसीदास की भक्ति के प्रभाव से वर्णित है। उक्त दोनों ग्रंथों के लेखक अपने-अपने संप्रदाय का भाग्रह रखते थे। मूल