पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/४५

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. २८ तुलसी की जीवन-भूमि गोसाई चरित की प्रामाणिकता में भी संदेह किया जाता है । अतएव इस विपय पर प्रियादास जी की भक्ति-योधिनी' भक्तमाल की टीका तीसरा साक्ष्य मान लेना होगा। जो टीकाकार के चैतन्य संप्रदायी होने के कारण उक्त दोनों सांप्रदायिक आग्रहों से मुक्त एवं जिसके अनुसार वृंदावन में तुलसीदास की यात्रा के समय उनकी अनन्यता की टेक रखने के लिए कृष्ण-मूर्ति का धनुप-याण धारण करने की चमत्कार- पूर्ण कथा का श्रेय तुलसीदास जी को ही था। यद्यपि इस प्रकार की चमत्कारपूर्ण घटनाओं की ऐतिहासिक समीक्षा करना अभिमेत नहीं है, तथापि जिन व्यास जी के संबंध में हमें निर्णय करना है, वे देवी चमत्कारों में पूर्ण विश्वास रखते थे, जैसा कि उनके 'साँची भक्ति नाम- देव पाई' आदि पदों में वर्णित घटनाओं से प्रकट है। नामदेव के हाथ से भगवान के दूध पी जाने की चमत्कारपूर्ण घटना व्यास जी की साखी में भी चर्णित है- नामा के कर पय पियो, खाई ब्रज की छाक । 'व्यास' कपट हरि ना मिलै, नीरस अपरस पाक ॥ अतएव हमें इस हेतु तो उस घटना को मान ही लेना पड़ेगा। व्यास जी का उक्त घटना को संकेत करने वाला पद यह है--- करौ भैया साधुन ही सों संग, पंति-गति जाय असाधु संग ते, काम करत चित भंग ॥ हरि ते हरिदासिन की सेवा; परम भक्ति को अंग । जिनके पद तीरथ मै · पावन, उपजावत रस-रंग ॥ जिनके वस. दसरथ सुत मारयौ, माया कनक कुरंग । तिनके कहत 'व्यास' प्रभु सुमरयौ, सत्वर धतुप-निपंग ।। [व्या० २१७ ] यहाँ पर व्यास जी के 'प्रभु' वृदावन-विहारी श्रीकृष्ण हैं, न कि विष्णु, क्योंकि व्यास जी ने अपने कितने ही पदों में नारायण या विष्णु