पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/५१

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तुलसी की जन्म-भूमि और एक समै तुलसीदासनी ने विचार कियो जो-नंददास श्री गोकुल में है, सो मैं जाइके लिवाइ लाऊँ । यह विचार के तुलसीदास काशी जी ते चलें, सो कितेक दिन में श्री मथुराजी आइ पोहोंचे । 'तुलसीदास काशी जी तें चले से कहीं अधिक महत्त्व का है इसी के आगे का यह कथन- तव मथुराजी में पूछे जो-इहां नन्ददास ब्राह्मण कासी ते भायो है, सो तुम जानत होउ तो बताओ, जो वह कहां होइगो । [ अष्टछाप, पृष्ठ ५७७] अस्तु । अव तो 'वाती के प्रमाण से ही भलीभाँति प्रमाणित हो गया कि वास्तव में 'तुलसी' और 'नन्द' रामपुर का निर्देश का निवास 'काशी' ही था । अब थोड़ा यह भी देख लेना चाहिए कि उसकी दृष्टि में 'रामपुर की स्थिति क्या है । सो 'भावप्रकाश' का प्रका- शन है- और सो वे पूरब में 'रामपुर' गाम में जन्मे । [वही, पृष्ठ ५२५ ] परन्तु क्या इससे सचमुच उक्त वार्ता का 'भावप्रकाशन' हो गया ? 'पूरब में रामपुर की कमी ? न जाने कितने रामपुर गाम' वहाँ बसे हैं। तो फिर इसका अर्थ क्या ? निवेदन है 'अयोध्या' । 'अयोध्या' ही वास्तव में 'रामपुर' है। किन्तु क्या अयोध्या को 'गाम' कहा जा सकता है ? समाधान भी वहीं धरा है। देखिए न, कितना सटीक कथन है- पाछे तुलसीदास ने नन्ददास सों कही जो-तुम हमारे संग चलो। सो-गाम रुचै तो अयोध्या मै रहो, पुरी रुचै तो काशी में रहो, पर्वत