पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/५०

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वार्ता में तुलसीदास सो यांचिके सुलसीदास के मन में यह आई जो-अव तो नंद- दास सर्वया इछा न आवेगो सो यह निश्चय करिके तुलसीदास तो चुपचुपाते अपने घर गए। [वही, पृष्ठ ५६६] 'अपने घर का पता लग गया तो 'अपने देश की थाह लीजिए । कहते हैं- तय श्री गुसांईजी के पचन सुनि के तुलसीदास बोहोत प्रसन्न भए । पाठे श्री गुसाई जी ते विदा होइके अपने देश को गए। और नंददास ने ह फेरि तुलसीदास को नाम न लियो । [वही, पृष्ठ ५७६ ] तात्पर्य यह कि 'वार्ता' के कथनानुसार तुलसीदास का 'घर' काशी और 'देश' पूर्व है। ननु नच को स्थान इसलिए नहीं कि- सो वे नंददास और तुलसीदास दोइ भाई हते। तामें बड़े तो तुलसीदास, छोटे नंददास । सो चे नंददास पढ़े योहोत हते, और मुलसीदास तो रामानंदी के सेवक हते । सो नंददास को हू रामानंदी के सेचक किए हते। [वही, पृष्ठ ५२५-६] में घरेलू परिचय दिया गया है। काशी के अतिरिक्त वार्ता के आधार पर कहीं अन्यन्न तुलसीदास का घर समझना भारी भूल है। हाँ, 'सनोढ़िया ब्राह्मण' कहना उसके सर्वथा अनुकूल है। जी। अभी तक हमने 'सं० १६९७ की वार्ता' का आधार लिया था और देखा था कि उसकी दृष्टि में तुलसीदास की स्थिति क्या है। उसके उपरांत श्रव कुछ 'सं० १७५२' की भावप्रकाश वाली प्रति का प्रमाण लीजिए । सो उसमें स्पष्ट कहा गया है- ३