पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/८०

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• तुलसी का सूकरखेत शंका' और समाधान आपके सामने है और निर्णय आपके हाथ में । परन्तु आपको यहीं यह जान लेना होगा कि जिन 'चरित-लेखकों का यहाँ निर्देश हुआ है वे चरितलेखक: इसी ..साहिबी या अँगरेजी काल के प्राणी हैं । तुलसी के प्राचीन चरित-लेखक तो 'जन्म' की कौन कहे, उनके 'बालपन' की भी चर्चा नहीं करते और न जाने क्यों होनहार बिरवान के होत चीकने पात' को पी सा जाते हैं। फिर भी मान के समीक्षक इस पर ध्यान नहीं देते और इधर-उधर के जंजाल की जाँच कराते फिरते हैं। ... .हाँतो तुलसी के प्राचीन चरित-लेखकों ने एक स्वर से कालपन की उपेक्षा । उनके बालपन की उपेक्षा की है, देखिए न, प्रियादास कहते हैं- तिया सों सनेह, बिनु पूछे पिता गेह गई, भूली सुधि देह, भजे वाही ठौर आए हैं । वधू अति लाज भई, रिसि सी निकसि गई, प्रीति राम नई, तन हाड़ चाम छाए हैं। सुनी जब बात, मानौ होइ गयौ प्रात, यह

पाछे पछितात, तजि, : काशीपुरी' धाए हैं !

कियौ तहाँ वास, प्रभु सेवा लै प्रकास कीनौ; "लीनौ दृढ़ भाव, नैन रूप के. लिसाए हैं। [श्रीभक्तमाल सटीक, पृष्ठ ७५९] और। और. भवानीदास. तो और भी अद्भुत कला दिखाते हैं। देखिए तो सही, किस रंगमें कह जाते हैं- श्री हनुमंत प्रसंग सुभ, प्रथम चरित. बिस्तार ।

.लझो गोसाई दरस रस, विदित सफल संसार ||

.... :: [चरित्र, पृष्ठ १३ ]