पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/९

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हमें संतोप है यह देखकर कि हमने तुलसी के जन्म स्थान की जो जिज्ञासा ओज से कई वर्ष पहले की थी वह हमारे अध्ययन से प्रतिदिन पुष्ट होती जा रही है। सत्य क्या है.? कौन कहे ? परंतु प्रमाण पुकार कर कहते हैं कि वस्तुतः वस्तु-स्थिति उसी के अनुकूल है | आगे विद्वानों का विचार जाने। इस पुस्तक के बन जाने में बहुतों का हाथ है । ऋणी सबका पर कृतज्ञ किस किस का बना बाय ? आभार की कभी सच्ची गणना हो भी सकती है ? फिर भी अपने संतोष के लिये इतना निवेदन तो कर ही देना है कि सोरों के लिये श्री रामदच भारद्वाज, 'राजापुर' के लिये श्री रामबहोरी शुक्ल तथा 'सूकरखेत के लिये श्री भगवतीप्रसाद सिंह जी ने विशेष सहायता की | लेख से ही नहीं अन्य सामग्री से भी । इनके अतिरिक्त 'भारत-कलाभवन' के श्री परमेश्वरी लाल गुप्त ने भी 'शंभु- संग्रह' के अनुशीलन में पूरा योग दिया और किसी प्रकार के योग से विमुख न रहे । 'चार्यभापा पुस्तकालय' और 'काशी विश्वविद्यालय पुस्तकालय तो अपनी मात्र ही ठहरे। उनके कर्मियों की भरपूर सहायता में कभी कमी नहीं पड़ती, अतः उनका आमार तो है ही। अंत में नाम ले लेना है श्री उदयशंकर शास्त्री का जिनके उद्योग और उत्साह से इस जन को बल मिला और प्रणयन के कार्य की बाधा दूर हुई। उन्हीं के साथ नागरी-सुद्रण' के लोग भी उल्लेख के योग्य हैं जिनकी तत्परता से पुस्तक समय पर प्रकाश में आ गई। श्री पद्मा मिश्रा के विषय में कुछ लिखने में भी संकोच होता है। श्री ज्ञानवती त्रिवेदी का योग भी सदा की भाँति इसमें भी है ही। नागरीप्रचारिणी सभा के प्रबंधकों का संकेत भर पर्यास है। हाँ, इतना कहना रह ही गया कि इस पुस्तक के निर्माण की आधारशिला है स्व. रामदीन सिंह जी की लगन जो उनके काशित 'रामचरितमानस' के भारंभ में कहीं भी सरलता से गोचर हो जाती है। पुस्तक के दोष अपने, गुण पंच के हैं। अधिक क्या ? तुलसी-जयंती चंद्रवली पांडे सं० २०११ वि० बनारस ५