पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/११३

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दहिय अश्तीकषा का सत्याग्रह

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झसंभव है।

आइए, अव हम फिर इतिद्वास के सूत्र को श्रागे बढ़ावें

मेरी दलील को बहुतन्से लोगों नेपसन्द किया । मैं पाठकों के

बिल मेंयह भी भर देना नहीं चाहता दि वह केवल मेरे ही थी। मैंनेइसे पेश किया उसके पहले भी लड़ाई में भांग लव का

विचार रखनेवाले बहुत से मारतीय थे द्वो। पर अब हे व्यावह्यारिक प्रश्न उपस्थित हुआ कि हत नक्‍्कारों को आवाज

मेंभारतीयों की तूती ही कौन सुनेगा ९हथियार तो हममें सेक्र्सी

मेंकमी हाथ मेंही नहीं लिये थे। पर लड़ाई में बिन हथियार काम के लिए भी तो वाज्ञीम की आवश्यता होती है! हम वो एक साथ 'क्विकमार्च' करना भी नहीं बानते थे। फिर फौज

के स्गथ लम्बी मंत्रिशें तयकरने, अपना-अपना सामान”अंसेवार्त

उठाकर चलने की तो वात दी कौन कह्दे ! दूसरे, गोरे लोग वो हम सबको 'कुक्ी' ही मानते थे। वेयदि हमारा अपमान कक

तिरस्कार की दृष्टि से देखें, तोयह सब हम कैसे वरदाश्त करेंगे!

हम फौज मेंभरती होने के लिए भाज्ञा माँगेंगे। पर उसे मंजूर

कैसे करावेंगे !आखिर हम सव इसी नतीजे पर पहुँचे कि

कुछ भी दो उसे मंजूर करवाते के लिए प्रयत्व तो जरूर दिल से करें। काम को करने लगे कि अपने आप नवीन रास्ते सूमकते

जावेंगे। अगर इच्छा होगी तो परमात्मा अवश्यमेव शक्ति भी

देगा। यह चिंता द्वीन करें कि इसें जोकाम मिल्लेगा उसे इम

केसे करें दिल्न को मज़बूत कर लें, सेवाघर्म स्वीकास्ते की निरचय कर हों, तो मान-अपमान का विचार छोड़कर अपमान

सह्दकरकेभीहमसेवा करसकेंगे । 2 पर हमारी माँग फो स्वीकृत कराने में बेहद मुश्किजों का सामना पढ़ा। उसका इतिहास वड़ा हो द्क्चसस हैं, पर उसे