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'बेंश्रर-लढ़ाई
की निशानी कही जायगी | इस बात का खयाज्ञ तक करना
हमारी धफादारी पर कल्लंक लगाना है। क्या कोई अंगरेज कभी तण भर के लिए भी ऐसा विचार कर सकता हैकि यदि अंगरेजों
फो हार हुई तोउसकी क्या द्वालत होगी? रणांगण मेंखम
ठोककर कूदनेबाज्ञा कोई भी सर्द ऐसी बेहूदा बारें नहीं किया
करता ।वेयह तो सरासर भनुष्यत्व के खिलाफ हैं[” यह दल्लील मेंने १८६६ में पेश की थी। और आज भी मुझे उसमें रहोबदल करने लायक कोई बात नहीं मालूस होती । ब्रिटिश राज्य-तंत्र परउस समय भेरा जितना मोह था,
'अपनो ख्ाधीनता की आशा का जो सुन्दर दृश्य मैं उससमय इस राज्यतंत्र के अन्द्र देखता था--वह मोह और बही आशा यदि 'आज भी कायम हो, तो मैंअक्षरसः यही दत्तील दक्षिण अफ्रीका
मेंऔर ऐसे ही प्रसंगों पर यहाँ भी, अवश्य पेश कहूँ। इस 'दल्लील के विपक्ष में चहुत-सी दलीलें मैंने दक्षिण अफ्रोका में उसके बाद विल्ञायत मेंभी सुर्ती। तो भो अपने विचारों
को.बद्लने जञायक कोई कारण मैंउनमें न देख सका। मैंजानता
हूँकि प्रस्तुत प्रसंग से मेरे आज के विचारों का कोई सस्बन्ध नहीं। पर उपयुक्तभेद स्पष्ट करने के दो प्रधान कारण हैं। पहला तो
यह कि मुझे यह मान लेने का कोई अधिकार कि इस पुस्तक फो जल्दी-जल्दी से हाथ में उठातेशैने वाला पानद्ठी ठक
'धीरन और शान्ति केसाथइसेपढ़ेगा और ऐसे पाठक भेरी "पहुल्नी सीढ़ी है।बगदिेरखाइसना यह् नींव के घर्म कीकीकितिक 2
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