पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१३०

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युद्ध के बाद

केवल गिड़गिड़ाने के फारण द्वीथोढ़ा-बहुत छोड़ जाते हैं.और

हमें उसमें सन्‍्तोष मान लेना पड़ता है, ठोक बेसे ही सम्तोष हमें कई बार मान लेना पढ़ता था। इस आन्दोलन के कारण “जिन अधिकारियों के बरसख्ास्त होने के विषय में मेंऊपर लिख

गया हूँ।उनपर मुकदमा भी चलाया गया भारतायों के प्रवेश के

'विषय मेंजो सयया शंका मुझे उस समय हुईथी, वह भी सच्ची

साधित हुई । गोरों को परवाने लेने का अब कोई काम न रहा ।

पर भारतीयों के लिए तो वद्द कानून वेसे दी जारी रहा ।ट्रान्सबालन फी भूतपूर्व सरकार ने इस विषय में लितना सख्त कानून चनाया था, उतनी ही सख्ती के साथ उस पर अमत् नहीं किया

ज्ञाता था, पर इसका कारण न तो उसकी उदारता थी और न

परक्षमनसाहत | उसका असली कारण तो अमत्नी विभाग की ज्ञापरवाद्दी थी।पर अगर वे अधिकारी भले होते तो पहली परकार की अधीनता में उन्हें अपनी भत्ममनसाहद दिखाने का

जितना अवकाश मित्न सकता था, त्रिदिश सरकार की अधीनता

मेंकभी नहीं मित्न सकता था । ब्रिटिश-तन्त्र पुराना है अतएव हृढ है,व्यवस्थित है,और उसके अधिकारियों को यन्त्र की तरह काम करना पढ़ता है,क्योंकि उनपर एक के बाद एक चढ़ते और उतरते हुए अकुश सते हैं। इसलिए यदि शासन संगठन ब्रिटिश हो और उदार दो तोजनता को एक उदार पद्धति का

अधिक से अधिक लाभ सिल्न सकता है। पर यदि बह जुल्मी या

कंजूस हो तो इस नियंत्रित सत्ता की अधीनता में वह भ्रज्ञा पूरी तरह दब कर पिस जाती है। ठोक इसके विपरोत स्थिति ट्रान्सवात्त

की पहलक्की सरकार जैसी सत्ता की अधीनता में होती है। उदार कानून के लाभ का मिल्ञना नमिलना हर विभाग के अधिकारियों के ऊपर अवक्षम्बित है। इसलिए जब ट्रान्सवाल में त्रिदिश