पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१२९

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दक्षिण श्रक्मीका का सत्याग्रह

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भी अधिक संझ्या मेंएफश्र होकर पौम पर नहीं दूट पढतेभर हम सब उसमे नहीं सर मिट्ते, तवतक मुमे ट्रान्सबाल्ञमेंही

रहना चाहिए । भारतीय नेताओं से मैंनेयद्वी हा। उनसे

अपना यह निम्धय भी कह सुनाया कि १८६४ फी तरह वकालत

करके मेंअपना मिर्वाह करूँगा। कौम तो यही 'बाइती थी | कौरन मैंने ट्रान्मवाल्र मेंवकालत के लिए अर्जी पेश की।'

मेरी मुझे यह जरूर शक था कि शायद यहाँ मीघकील-मण्ठत

आर्जी का विरोध करेगा पर यह निर्मृज् साबित हुआ। मुमेसमद दी गयी और जोहान्सबर्ग मेंमेने अपना आफिस खोज

दिया। ट्रान्सवाल भर में भारतीय सब्रसे अधिक सस्या भें

जोहान्सवर्ग मेंदी वसते थे। इसलिए मेरी आजीविका और जोहान्सवगे ही भनु्कृूत फेन्द् समाज-सेषा इन दोनों दृष्टियों से था। दिन-पर-दिन एशियाटिफ आफिस की गदगी का अधिका-

घिक कट अनुभव मेंले रद्य थाऔर वहाँ के तमाम मारतोय

समाज का पूरा बल्न इस गन्‍्दंगी को दूर करने ही को ओर ज्ञगाया जा रद्दा था।अब १८८५ के कानून को रद करना तो दूर की वात हो गयो थो इस समय तो सबसे अधिक महत्व की

वात यही थी कि एशियाटिक आफिस रूपी भयहुर बाढ़ से अपने को कैसे बचावें। जार मिल्नर, लाड़ शेल्बने जो पह्दों शये ये,सर आधर लाली जो ट्रान्सवाल सेंलैफ्टिनेंट गवर्नर थे और बाद मदरास के गवनेर भो हो गये थे, उनके पास और उनसे नीचे की श्रेणी के अधिकारियों के पास भी डेप्यूडेशन

भेजे गये और वे लोग उनसे मिले । खय्यं में भी कई बार मिल्ञता । जुछ-छुछ रिआआयत भी मिल्वती | पर इस तरह हाथ पेर पंटकने से क्या होना जाना था ? डाकू जिस प्रकार हमारी'सारी

सम्पत्ति लूटकर ले जाते हैंभौर फिर हमारे गिडंगिडाने पर और