पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१३२

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पुद्ध फेचाद

के खिलाफ ये,उन्हें 'अलग पुस्तक रूप में छुपा लिया और एशियाटिक विभाग ने उत्तका उपयोग अथवा हमारी दृष्टि से

कहें तो दुरुपयोग आसानो से करना शुरू भी कर दिया। अब कानूनों मेंभारतीयों का निर्देश करने के बजाय यदि इस सरद्द उनकी रचना को जाती कि वे सबके लिए एकसा लागू फिये जा सकें, सिफे उन पर अमल करना न करना अधिकारियों की पसंदगी पर ही छोड़ दिया जाय अथवा उनका अर्थ त्तो सबके जिए लागूहोपर कटाक्ष भारतीयों पर अधिक हो, तो

ऐसे कानूनो से भी उनके रचीयताओं की अभीष्ट सिद्धि हो

सकती थी। और इतना होते हुए मीकद्दा जासकता कानून

सत्रके ज्िए एकसे हैं| इससे किसी का अपमान भी न होता।

फिर आगे चत्तकर यदि विरोधी-भाव सन्द होता, तो बिता कानूत

मेंकिसी प्रकार के रहोवद्ल्ल किये केवज्ञ उसके उदार उपभोग से,

जिस किसी के खिलाफ वह चनाया गया द्वो वह बच ज्ाता।

लिस प्रकार दूसरी भ्रेणी के कानूनों को मैंने सावजनिक कहा! उसी अकार पहिली श्रेणी के कानूनों फो एक देशी, कौमी अथवा जातिगत कानून कद सकते हैं। दक्षिण अफ्रीका में उसे, 'रंगमेदी' कानून कट्दा जाता है। क्‍योंकि उसमें रंग भेद को याद्‌ रखते हुए काले अथवा गेहुँए रंग की जातियों पर गोशों की

अपेक्ता अधिक सख्ती बतायी गयी है। इसी का नाम 'कल्रबार! अथवा रंगभेद या रंग-हूषहै।

पद्विले बने हुए कानून में से द्वी एक उद्दाहरण लीजिए ॥* ८

पाठकों को याद होगा कि नेटाल मेंमताधिकार का जो पहला

कानून बनाया गया और बाद मेंरद हुआ, उसमें एक इस आशय की धारा भी थी कि एशियाटिक मात्र को भविष्य में मताधिकार

न दिया जाय| अब यदि “इस कानून को 'रद करना हो तोः