पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१३३

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इचिण भ्रक्तीका का सत्यामरद रह ज्ोकमत फो यहाँ तक तैयार करना पढ़े कि वहाँ के श्रधिर्शश लोग एशियावासियों का द्ेप छोड़कर उनसे मित्र-भाव रखने लग जायें |जब वह अवसर श्ावे तभी तवीन कानून की रचता

द्वारा वह रंग का कलंक दूर किया जा सके |यह हुआ एक देशी अथवा रंगभेदी कानूत फा दष्टान्त |अंब्र वह कानून रहें होकर

को दूसरा कानूत बनाया गया उसमें भी तो वह लू हेतु (रे

भेद का )लगभग समाविष्ट हो ही गया था। तथापि उसकी शब्द रचना इस प्रकार की गयी कि आपत्तिजनक शब्द निकाल कर उसे सावेजनिक बना दिया गया |उस कानून की धारा की भावाथे इस तरह ऐ--नेदाल मे उस जाति को मताधिकार नहीं दिया जा सकता जिसको पार्लियामेंटरी फ्रोचांइज--अ्थात्‌ वह

मताधिकार जो हंगलैंढ को मुख्य जनसभा के लिए सभासदू चुनने वालों को होता ह--न हो। अब इसमें न कहीं भारतीयों का

नाम हैऔर न एशियानिवासियों का । कानून के पंडित इस ब्रात पर अपनी-अपनी भिन्न-सिन्न राये देंगेकि भारत मेंइगलैंड केजेसा मताधिकार हैया नहीं! पर उदाहरण के लिए हम जरा मान लेते हैंकि भारत में उस समय अर्थात्‌ १५६७ में मताधिकार नथां

था आज भी नहीं है,तथापि यदि मताधिकारियों के नाम दंग करनेवाला अविकारी भारतीयों के नाम भी ज्िख के तो कोई इस पर सहसा यह आत्लिप नहीं कर सकता कि यह “रैर कानूनों

कारबाई” है। धामान्यत हमेशा प्रज्ञा केअनुकूल हो अनुमान

'कियां जाता है। इसल्षिए.यदि वहाँ की सरकार भारतीयों का

“विरोध न करना चाहे तो उपयुक्तकानून केहोते हुए भो मता-

'धिकार पुस्तक मेंभारतीयों के नाम लिखे जा सकते हैं।इसलिए सानज्ीज्षिए कि यदि नेटाक्ष में भारतोयों के प्रति जो विरोध

द्ैबह आगे च्ककर कभी मन्द. दो गया, अथवा वहाँ को