पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१३६

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युद्ध के बाद '

से-अधिक जितना घन इकट्ठा कर सके उतना कर लें ।, तब के यह केसे बरदाश्त कर सकते थे कि-सारतीय भी इसमें अपना हिस्सा बेंदा लें ।साथ ह्वीतत्वज्ञान काआडबर भी शुरू हुआ।

दक्षिण अफ्रीका के बुद्धिमान मनुष्यों को फेवल व्यापारी दलील

से कैसे संतोष दो सकता है( अन्याय करने के लिए भी बुद्धि, हमेशा ऐसी ही दलीलें दृंढ़ती है, जो उसे युक्तियुक्त मालूम हों।

यही दक्तिण अफ्रीका में भीहुआ। जनरत्ञ स्मट्स वगेरा से जो द्ीक्षे पेश की वेयेहैं:«“दक्षिण अफ्रीका पश्चिमी सभ्यता का प्रतिनिधि है॥

भारत पूर्वीसभ्यता का केन्द्र है।इस ज़माने के तत्वज्ञानी तो इस बात को कुबूल नहीं करते कि दोनों का भी सेल हो सकता है। न्यूनांधिक परिणाम मेंभी यदि इन दोमिन्‍न-मिन्‍्नर विरोधी सभ्यताओं की प्रतिनिधि जातियों का संगम होतो उसका परिणाम

सिवा विरफोट अथांत्‌ लड़ाई के ओर कुछ हो द्वी नहीं सकता।

पश्चिम सादगी का विरोध करता है। पूर्वकी जातियाँ सादगी को ही प्रधानता देती हैं। फिर इन दोनों का सेज्ञ हीकेसे दो सकता है !फिर यह देखने का काम राजपुरुषों का अर्थात्‌ व्यावद्वारिक आदुर्मियों का नहीं कि इन दो सभ्यताओं में कौन-सी श्रेष्ठ है!पश्चिस कीसभ्यता भक्णी हो या बुरी-पश्चिमी जातियाँ

तो उसे छोड़ना नहीं चाहती और उसे बचाने के लिए उन्होंने

प्रयत्न भी किया है, खुन को नदियाँ बद्ाय्ी हैं। कई प्रकार के अन्य दुःख भी सहदे है। अ्यात्‌ अभी यह सेसव नहीं कि

पश्चिम की जातियाँ दूसरे किसी मागे को ग्रहण कर लें-। ४ इस दृष्टि सेदेखा जाय वो, न तो यहाँ गोरों और भारतीयों

का सवाल है!न व्यापार हेंष का, और न वर्णु-विद्वेप का ही | यहोंतोकेवल अपनी सभ्यता फी रक्षा का, अर्थात्‌ उच्चतम