है. जैई 2
सत्याग्रह” बनाम 'पेसिव रोज़िस्टेन्स! जप श्न्दोलन आगे बढ़ता चला वेसे-बैसे अंग्रेज भी उसमें रस लेने लगे | मुझे यह कह देना
चाहिए कि यद्यपि ट्रान्सवाल के अंग्रेजी अखबार अक्सर उस खूनी कानून के पक्ष में हीलिखते और गोरों केविरोध फा समर्थ करते थे, तथापि अगर कोई प्रख्यात भारतीय उनमें कोई लेख भेजते तो उसे थे खुशी से छापते थे ।सरकार के पास भारतोयों की जो द्रख्वास्तं जाती थीं उन्हे भी वे या तो पूरी छापते थे या उनका सार देढेते थे। वड़ी-बड़ी सभायें होती थीं। उनमें कभी-
कभी वे अपने रिपोर्टर भी भेजते थे। और जहाँऐसा न हो चहाँ यदि सभा की रिपोर्ट हम लिखकर भेज देते और चह छोटी होती--तो उसे भीछाप देते थे।
है
गोरों कायह विवेक भारतीयों के लिए बहुत उपयोगी
सावित हुआ | आन्दोत्नन के बढ़ते दही कितने ह्वी गोरों का भी
जन उसने आकर्षित कर लिया। इसश्रणीके ऐसे गोरे अगुआा जोहान्सवर्ग केएक लखपति' मि० हास्किन थे | उसमें रंगद्वेष का तो पहले ही से अभाव था! पर आन्दोलन शुरू होने पर मार-
२3 की हलचल मेंउन्होंने अधिक दिलचस्पी दिखाई। जमिस्ठन