पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१६८

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शत्पाम्रए! बनाम 'पैतिव रेजिस्टेन्स!

समय डा० विद्वपफ् के नेठृत्व में इंग्लेंड के 'नान्‌ कर्फामिस्ट

नामक ईसाईपक्षने पैसिव रेजिस्टेन्स फो अख्तियार किया था।

इंलट फी 'मौरतों नेमताधिकार फे लिए जो पायद॑स्त आन्दोतन किया था उसे भी पेसिव रेनिस्टेन्स ही कट्दा जाता था। इन दो हलघलों फो ध्यान मेंरखते हुए ही मि० हारिफिन ने कद्दा था कि

पैमिव रेजिस्टेन्स फमज्ोरों काअ्रथवा उन लोगों का शस्त्र हैं सिन्हें मताधिकार न हो । ढा० क्लिफ्फई के पत्त को मताधिकार था पर उन्तकी संख्या सभा मेंइतनी कम थी कि वह उस कानून

को रोफने मेंसफल न हुई | अर्थात्‌ पढ़ पक्त सख्या में कममोर सावित हुआ | यह बात नहीं थी कि अपने उद्देश्य फी पूर्ति के लिए वह पक्त शत्त्र-्महण कदापि न करे । पर ऐसे कामों में

अगर वह शस्त्र प्रहण करता भी तो उस से कार्यसिद्धि नहीं हो सकती थी। सुव्यवस्थित राजतन्त्र में इस प्रकार एकद्म वलवा करके हमेशा दृक प्राप्त नहीं फिये जा सकते | फिर डा० क्लिफ्फड

के पक्ष केकितने ही ईसाई ऐसे थे जो सामान्य परिस्थिति में

शाक्षों काउपयोग हो भी सकता होता तो उसका विरोध करते ओरतों के आन्दोलन मेंमताधिकार तो था ही नहीं । संख्या

और शारीरिक दृष्टि सेभीवेआखिर कमजोर थीं। भथांत्‌ यह

उदाहरण भी मि० द्वाकिन्स की दक्कीक्ष कासमर्थन ही कर रहा था। औरतों के आन्दोकन मेंशर्तों कात्याग नहीं किया गया था। उनमें से एक पक्त ने तो कितने ही सकान जला दिये थे--

पुरुषों पर दमले तक किये थे। मेंयह नहीं जानता कि उन्होंने /किसी का खून करने का भी निश्चय किया था या नहीं, पर उनका

हेतुयह तो जरूर था कि मौका मिलने पर मारपीट करना और इस तरह कुछ न कुछ उपद्रव खड़े करते रहना । इसके विपरीत

भारतीयों के आन्दोलनमेंहथियारों फेलिए तो कहीं भी भौर