पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१६९

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दर्दिए प्रफीकां पा तत्माग्रह-

किसी भी परिरियति मेंस्थान नथा। और जैसे-जैसे हम झगे

चढ़ेंगेदैसे-बैसे पाठक मी देखेंगे कि बढ़े बढ़े ढुःख सत्याप्रीियों पर पढ़ेकिन्तु उन्होंने कमी शरीर-बल्ल का उपयोग नहीं किया, और बह भी ऐसे समय लघ कि उसका सफलतापूर्वक ठषयोग

करने की उममें शक्ति थी। दूसरे यद्यपि यद सत्य हैकि भारतीयों

क्षोमताधिकार नथाऔर बह कौम कमजोर भी थी; वथाति

आन्दोक्षन की योजना के साथ इन दोनों चातों का कोई संदन्ध

न था। इससे मेरे कहने का यह मतलब नहीं कि यदि को सत्ताधिकार होता और उनके पास शस््वत्ष द्वोता तो भी वे

सत्याग्रह हीकरते |मताधिकार द्वोता तो प्रायः सत्याग्रह की आवश्यकता ही न थी। केवज्ञ शत्मवल द्योता तो भी प्रतिपददी सेमलकर चञता । अर्थात्‌यहभी समझ में आने जाय पी

है कि शस्र्वत्त के होते हुए भीकिसी सम्राज्ञ में ऐसे असंग आा सकतेहैंजब सत्याप्रह से काम लेना पढ़े। मेरे कहने का

तालये तोः केषज्ञ यही है और मैंनिश्वयपूक यह कह सकता है कि भारतीयों के आन्दोजन की योजना करते हुए मेरे दिल्ल मेंय६ सवात्त खड़ा ही व हुआ था कि हम शस््रवत्ष का उपयोग कर

सकते हैंया नहीं | सत्याम्रह केवल आत्मा का बल है | श्रंतः

जहाँ निदते अश मेंशरीख्बक् या शत्त का उपयोग द्ोोता हो या

उसकी भाषश्यकता प्रतीत होती होवहाँ और उतने ही अंश में आत्मबल का उपयोग कम होता है। भेरे मत में वो वे दोनों

विरोधी शक्तियाँ हैं। यद्‌विचार उस आन्दोलन के जत्म के २ समय भी मेरे हृदय मेंपूरीतरह पक्का होगया था ।-पर इसस्थात पर द्मेंयहनिर्णय तहों करना है कि थे

विचारयोग्य येया अयोग्य। इसे हो यहाँ सिफे। सत्याम्रह और

पेसिव रेजिस्टेस्स के बीच का भेद सात्न जान लेना है। हस य है