पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१८१

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दल्षिण अप्रीका पा सायाग्रए

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अफ्रीका यापिम जौटे। गदिरा पहुँचते ही हगे मि० रिपे की

सार मिक्षा कि ल्ाद एल्गित ने यह प्रफट किया हैकि ट्रान्सपाझे

का एशियाटिक एक्ट नामन्जूर फरने के लिए मस्ती-मणदक् न

बादशाह से मिफारिश की है। फिर हमारे हप का क्या ठिकाना ।

भदिरा से केपटावन पहुँचते १४-१४ दिन क्षय जाते हैं। मद समय हमने बहुत आनन्द के साथ पिताया और मविष्य मेंधन्य हुःछों को दूर करने फे लिए शेखचित्ती के से हयाई फ़िले बनाते रहें।

पर दैवगति विचित्र है। हमारे किये फैसे गिरे-नयूर-्चूर हो गये इसका दृत्तात हम अगल्ले भ्रध्यायों मेंदेगंगि । क पर यह अध्याय पूरा करमे फेपहले पक थे पतरित्र स्मस्णों

को बगेर कह्टेनहीं रहा जा मऋता। गुझे इतना तो जरूर ही फट

'देना चाहिए ।क विल्ञायत मेंहमने एक क्षण भी वेफाम नहीं नाने

दिया। बहुत से गशती पत्र वगरा भेजना तथा हसी प्रकार के अन्य सब काम एक आदसी से फभी नहीं वन सकते । उत्तम

बड़ी मदद की जरूरत होतो है। बहुत सी सद्दायता वो ऐसी है

जो पंसेखर्च करने पर मिल सकती हैपर मेरा ४० साक्ष का

अनुभव यह हैकि यह उतनो गहरी और फशशील नहों द्वोती

जैसी कि शुद्ध सवयसेवरकों कीहोतो है। सौभाग्यवश हमें वहाँ 'ऐसी ही सहायता मित्नी थी। वहुत स भारतीय नौजवान जो वहीँ अध्ययन कर रहे थेवे हमारे आमपास बने रहते। और उनमें

से कितने ही विना किसी प्रकारके लोभ के सुबह-शाम इमें इमेशा सद्दायता करते रहते। पते लिखना, मफले करना, टिक्टि चिपकाना

या ढाक घर में जाना आदि। किसी भी काम केल्षिए मुमोयह

याद नहीं आता कि उन्होंने यह कहा हो कि यदद काम हमारे दर्जे

को शोमा नहींदेताइसलिए हम नहीं कर सकते । पर इन सबको

एक तरफ बेढठा दृन्नचाजा और मदद करनेषाला एक अंग्रेज मिन्न