पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२४

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१६ इतिहास को एक चमड़े ढक लेते हैं कोई-कोई नही ढकते । पर कोई पाठक इसका यह अर्थ न करे कि वे अपनी इन्द्रियों को अपने अधीन नहीं रख सकते। जहाँ एक बड़ा समुदाय एक रूढ़ि के अनुसार चलता हो, वहाँ दूसरे समुदाय को भले ही वह रूढ़ि बेजा मालूम होती हो, पर यह बिल्कुल मुमकिन है कि पहले की दृष्टि में वह तुरी धात कतई न हो । इन हवशियों को इतनी फुरसत ही नहीं होती कि एक दूसरे को ओर ताक करें। भागवतकार कहते हैं कि शुकदेव जी जब नंगी नहानी स्त्रियों के बीच से होकर चले गये, तब उनके मन में जरा भी विकार उत्पन्न नहीं हुआ और न उन निर्दोष स्त्रियों हो के मन में चोभ हुआ और न कोई शर्म मालूम हुई । इसमें मुझे कोई घात अलौकिक नहीं मालूम होती | हिन्दुस्तान में आज ऐसे अवसर पर कोई भी इतनी निर्मलता अनुभव नहीं कर सकता। वह मनुष्य जाति की पवित्रता की हद नहीं, बल्कि हमारे दुर्भाग्य का चिह्न है । हम जो इन्हें जंगली मानते हैं यह हमारे अभिमान की प्रतिध्वनि है । जैसा हम मानते हैं ऐसे जगली वे नहीं हैं। ये हबशी जब शहर में आते हैं, तब उनकी स्त्रियों के लिए ऐसा कानून है कि उन्हें छाती से लेकर घुटने तक शरीर ढँक लेना चाहिए। इसलिए उनको मजबूरन एक कपड़ा लपेट लेना पड़ता है। इसके फलस्वरूप दक्षिण अफ्रीका में इस नाप के कपड़े की बहुत विक्री होती है और ऐसे लाखों कंगल और चहरें हर साल यूरोप से आतो हैं। पुरुषों के लिए कमर से घुटने तक बदन ढाँक रखना लाजिमी है। इससे उन्होंने तो यूरोप के बने हुए को पहनने की प्रथा शुरू कर दी है। जो