पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह २० ऐसा नहीं करते वे नाड़ीदार चड्डियाँ पहनते हैं। तमाम कपड़े यूरोपही से आते हैं। इनका मुख्य आहार है मकई और जब मिल जाय तब भास खुशकिस्मती से वे भी मसाले वगैरों से विल्कुल अनजान हैं। इनके भोजन में यदि मसाला पड़ा हुआ हो या हलदी का रंग दिखायी दे तो नाक भाँइ सिकोड़ने लगेंगे । और जो बिल्कुल जंगली माने जाते हैं, वे तो उसे जुएँगे भी नहीं। एक सेर साधित उबाली हुई मकई को थोड़ा-थोड़ा नमक लगाकर खा जाना एक मामूली जुलू के लिए कोई बड़ी बात नहीं हैं। कई के आटे को पानी में पकाकर खा लेने में सन्तोष मानते हैं। जब कभी मांस मिल जाता है तब कथा, या पका अथवा भूनकर नमक के साथ खा जाते हैं। किसी फिल्म के भी प्राणी का माँस खाने में वे नहीं हिचकते । उनकी भाषा का नाम भी जुलू है। लेखन कला का प्रवेश वहाँ गोरों ने ही किया । हबशियों की कोई वर्णमाला नहीं। हाल में रोमन लिपि में बाइबिल वगैरा हवशियों की भाषा में छापी गयी हैं। जुलू भाषा बड़ी ही मधुर है। बहुतेरे शब्द का Terr आकारान्त होता है। इससे भाषा की ध्वनि कान को इसकी और मीठी लगती है। मैंने पढ़ा और सुना है कि उसके शब्दों मे अर्थ और कवित्व दोनों होते हैं। जिन थोडे शब्दों का ज्ञान के अनायास हो गया है उससे मुझे मापा सम्बन्धी पूर्वोक्त मत ठीक मालूम होता है। शहरों आदि के जो नाम मैंने पहले दिये हैं वे युरोपियन लोगों के बनाये हुए हैं। उन सब के काव्ययही नाम भी हैं। वे मुझे याद नहीं रहे। इससे यहाँ का।