पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२४७

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ददिय श्रमीरा फा सत्याम्रद

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हो यह उम्मीद करता था कि आ्रपपे दफ्तर में जाकर द्सों झंगुलियों की छाप देकर सबसे पहले अपना परवाना लूं। पर इखवर फो यह मजूर न था। पर अ्रथ फृपया यहाँ पर अपने कागज

मेंगाकर मु रजाटर फर ल्ीजिए। में शआराशा फरता हूँडि आप मेरे पहले क्रिसीफों रजिस्टर न फरेंगे।! उन्होंने कहां: “ऐसी कौन जक्दी पढी है) शमी ठास्टर साहब शरद ६!

जापको जरा तससझ्ी हो जाने दीजिए फिर सथ् हीता रहेगा।

दूसरों फो परवाने अगर दूँगातो भी आपका नाम सब्र में पढले

रख गा।” मैंने कहा “यह नहीं हो मकता। मेरी तो यह प्रति्वा हैकि अगर जिन्दा रद्द और परमात्मा ने चांद्दा दो में ही सबसे पहुजे परवाता छूंगा। इसलिए तो मैं इतना आप्रदद कर रह हूँ।आप फागज ले आइए !” थे गये। मेरा दूसरा कार्म यद्द था कि अटनी जनरल अर्थात्‌ सरकारी वकीज्ञ कोयद्द तार

कर दूँकि सौर आलम और उसके साथियों ने मुमपर जो

इमला कियाहैउसके लिएमेंउन्हें होपो नहीं सममाता। चाहे जो हो मेंयह चाहता हूँ किउनपर फौजदारों मुझुदमा दायर

न किया जाय। मेंआशा करता हूँकि आप उन्हें मेरे किए मुक्त कर देंगे। इस 'तार के फलस्वरूप भीर आज्षम और साथी छोड़ दिये गये ।

पर जोहान्सवगे के गोरों नेअदर्ना जनरल को -नीचे लिखे

अनुसार एक सख्त पत्र लिखा:-«

“मुज्ञजिसों फो सजा देने न देने केविषय मेंगांधी के चाहे

जो विचार हों,वे यहाँगर नहीं चल सकते |खुद उसीको मारा है

इसलिए वह भत्ते ही उनका कुछ न करे। पर मुलक्षिमों ने उसे उसके घर मेंलेजाकर नहीं मारा है। जुर्मआम रास्ते पर हुआ है। यह एक सावजनिक अपराध है। कितने ही अंग्रेज इस