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गोरेसहायक
अगर दवन जाकर उस काम को संभाजञ हेंतो सचमुच यह बड़ी भारोसहायता होगी। पर मैंआपको अधिक नहीं दे सकूँगा ।
सिफ १० पौरड मासिक वेतन |हाँ, अगर प्रेस में कुछ लाभ
होतो उससें आपका आधा हिस्सा रहेगा।”
' “काम अवश्य जरा कठिन है। मुमे अपने भागीदार की
आज्ञा लेनी होगी। कुत्र उगाही भी वाक्की है।पर कोई चिंता की
वात नहीं |आज शाम तक की मोहलत आप भुमे देसकते हैं?” “अवश्य, हम शोग छः बजे शाम को पाक मेंमिलेंगे ।”
“जरूर, में भीआ पहुँचूँ गा”
छं; बजे शाम को हम मिले| भागीदार की आज्ञा भी
मिक्ष गई। उगाही काम को मेरे जिम्मे करके दूसरे दिन शाम की देन से मि० वेस्ट रवाना हो गये ।एक महीने के अन्दर उनकी यह्
रिपोर्ट आयी -- “इस छापेखाने मेंनफ़ा तो नाम को भी नहीं है।
शुकसान दी नुकसान है। उगाही बहुत वाकी हैज्ञेकिन हिसाब का कोई ठिकाना नहीं है। ग्राहकों केनाम भी पूरे नहीं लिखे
गये हैं।मैंयह शिकायव करने के खयाल से नहीं लिखता।
आप विश्वास रखिए, मैंज्ञाम के ल्ञाक्षच से यहाँ नहीं आया हैँ। अतः इस काम को भी नहीं छोदूँगा। पर मैं आपको यह तो सूचित किये ही देता हूँ किबहुत दिन वक आपको घटी-पूर्ति
करनी होगी |” प्राहकों को बढ़ाने तथा भेरे साथ कुछ बातचीत करने के
लिएमदनज्ञीव जोहान्सबर्गआयेथे। मैं हर महीने थोड़े-बहुत
पैसे देकरघटी की पूर्ति किया ही करता था। इसलिए, मैं
निश्चयरूप से यह जानना चाहता था कि और कितना गहरा इस काम मेंमुझे उतरना द्वोगा ? पाठकों से में यह तो पहले ही कह चुका हूँकिसदतलीत को छापेखाने का फोई अनुभव