पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२६७

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, दरक्तिण श्रफ्तीका का सत्याग्रह श्् यदि पाठक पूछेंकि इन तमाम गोरों कीसहायता का फये

फत्त हुआ, तो मैंउत्तर दूँगा कि फल्-निर्देश के लिए मैंनेयह

अध्याय नहीं ल्षिखा है। कितनों का फाम ही, मिसका वर्णन पहले दिया जा चुका है,फतस्वरूप है। पर यद्द सवात् जहर सक़ा हो सकता हैकि इतने द्वितेषो गोरों की सम्पूर्ण प्रयुत्तिका परिणाम कया हुआ ९ पर यह युद्ध ही ऐसा था कि उसका परिणाम ख्

युद्ध में हीसमाविष्ट था। यह युद्ध स्वय॑ काम करने की शक्ति फष्ट-सहन, त्याग और इंश्वर पर श्रद्धा इन तौन बातों की परीक्षा

दी था। गोरे सह्दायकों के नाम लिखने का यह भी हेतु हैकि यदि दक्षिण अफ्रीका के इतिद्वास में उनकी की हुई सद्दायता का उल्लेख न किया जाय तो बह इतिहास का एक दोष समझा जायगा। मैंने सभी गोरे सहायकों के नाम तो किखे ही गईं!

जितने दिये हैंउतने पर से सहायक मात्र के प्रति धन्यवाद हे

दो नाता है |इसके अतिरिक्त और भी एक कारण है। मैंने यह

एक सिद्धान्त कायम कर रखा हैकि हरएक दलचल के तमाम परिणामों को हम नहीं देख सकते | तथापि शुभ काये का फश

शुभ ही होगा--फिर वह दृश्य हो या अदृश्य | एक सत्याम्रद्दी की

दैसियत से इस पिद्धान्त के प्रति मुझे अपनी श्रद्धा मी प्रकट करनी थी। दीसरे भुझे यह दिखाना था, कि सत्य पर आधार रखनेवाली इलचल्लें इसी प्रकार अनेक शुद्ध और निःस्वार्थ सही" यताओं को भाकित फर लेती है। अग्रतक इस अध्याय में यह

बात स्पष्ट न हुईतो मेंऔर भो स्पष्ट फरदेना चाहता हूँ कि, सत्याम्रह के युद्ध में सत्य की ही सर्वोपरि रक्षा करनी चाहिए।

थह यदि प्रयत्न सममा जाय तो इसे छोड़फर कोई भी प्रयछ गोरों फी सहायता प्राप्त करने फेलिए नहीं किया गया था। युद्ध के झान्तरिक घक्ष से ही ये आकर्षित हुए ये।