पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२६९

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इद्धिण अफ्रीका का सत्याग्रह

श्ध्ृध

दीय ट्रान्सवाल के बहाने सारे दक्तिण अफ्रीका के भारदीयों के लिए मणढ़ रहेथे। इस नेटाल कीगलतफहमी को दूर करने के

ज्षिए भी मुझेडबन जाना जरूरी था |इसलिए पहला मौका मित्षते

हु दी मेंवहाँ गया। उन मेंभारतीयों कीएक विराट सभा की ययी। कितने ही मित्रों ने मुझे पहिले द्वी से सावधात कर रक्‍्खा था। “इस

सभा में आपपर हमला होगा । इसलिए या तो आपको समा में जाना दी नही चाहिए या आत्मरत्ञा का कुछ उपाय सोचकर जाता

चाहिए। ” इत्त दो में सेएक भी बात को मैं नहीं कर सकता

था। नौकर को मालिक बुत्ञावे और यदि वह डरकर न जाय तो

उसका सेवाधर्म कहों और यदि वह मालिक की दी हुईसजा से

डर गया तो लौकर केसा ९ केवल सेवाभाव से सावंजनिक सेवा करना तलवार की घार पर चढ़ने के समान है। ल्ोकसेवक

सु लेने के लिए तो तैयार हो जावा हैफिर उसे निन्‍्दा के

समय क्योंकर अपना मुँह छिपाना चाहिए ? इसलिए मेंतो

चरावर नियत समय पर पहुँच गया ।समभौता किस प्रकार हुआ

आदि सममाया। दुछ सवात्ञों के उत्तर सी दिए। यह सभा रात

के करीब आठ बजे शुरू हुईद्वोगी । काम लगभग समाप्त हुआ ही था कि इतने में एक पठान अपनी लाठी लेकर मंच पर चढ़ा ।

बस उसी समय वत्तियाँ भी गुज् दो गयीं। मैंसमझ गया। अध्यक्ष

सेठ दाऊद मुहस्भद सेज्ञ परचदुकर सममाने छगे। मेरा वचाव

करनेवात्षों ने मुझे घेर ज्िया। मैंने भआत्मरक्षा का कोई उपाय

नहीं किया था |पर मैंनेदेखा किसमा करनेव|ले तो सब तरह से तैयार द्वोकर आये थे | उनमें से एकदोअपनी जेव मेंरिबाल्वर भी क्षाया था। उसमें उसका एक खाली वार भी किया। इधर

पारसी रुस्तमजी, हमे केतक्षण देखकर पुलिस सुपरिन्‍्टेहेन्ट